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नेमीश्वर बाललीला फाग जाणे अनंगि रंगीम, नारिंग नवरंग, पदमिनि-केरां निरमल, . सकल सकोमल अंग ॥७१॥ . वसंत-तणा गुण गहगहिया, महिमहिया वनहिं रसाल, जाणे अनंगि रंगीअ, वसंतनुं नाम वृथा वहीजइ ॥७२॥
रासेउ हरि-अंतेउर नेमि सुदेवर, वणि वणि विचरइ पाये नेउर,
बेउ परिभजती केलि ॥७३॥ टोडर कंठि ठवी मंदार, पारिधि पारिजात शृंगार,
खेलई हरि मन मेली ॥७४॥ काव्यम् सुमश्रेणीभूषा नवतनुरुचिः कीर्त्तितगुणः
सुवर्णालङ्कारः सकलसुरनारीभिरभितः । सराग सिन्दूरैर्मसृणधुसृणैरञ्चितवपुः
जिनो भाति श्रीमान् परिणयविधावुद्यत इव ॥७॥
फागु विचरइ वनिता वणि वणि, मान मेल्हाविय दरपण, गंगा-तुग-तरंगित, खेलइ नेमि खडोखली, युवतीजन-मन-रंजन, पेखीअ शिवदेवि-नंदन, सोल सहस गोपांगना, गायई चतुर चकोरिय, मृग-मद निलवटि टोलीय, झीलई देउर-सरसीअ, सौवर्ण-सींगो जलि भरइं, छंटइं चतुरि चंद्राउली, १. मश्रुण
श्रवणि झबुकई झालि. परपण गोरीय गालि ॥७॥ रंगित केसरि-नीर, मोकली योजनि तीरि ॥७७॥ अंजन-पुज-समान, मदन तिजइ अभिमान ॥७८॥ अंगना करीय शंगार, गोरिय नेमिकुमार ॥७९॥ ढीलीय वीणि विशाल, सरसीअ माहि रसाल ॥८॥ संभरइ सरस विशाल, बाउली बहुल सुवास ॥१॥