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नेमीश्वर बाललीला फाग अधर-तणइ रगि रातुं, जातुं अंजन-अंशि.
काव्यम् नाशावंशप्रान्तदेशे निलोना, राजीमत्या व्यक्तमुक्ता ह्यराजत् बिम्बोष्ठेनोत्शोणिमां संदधन्तो, गुजा-श्याम नेत्रयोरञ्जनेन ॥२४॥ होठि ठवी परिवालय,
बालीय भोलइ वेसि, राजल गुणिहिं संपूडी, गोरडी जिणवर-रेसि ॥९५॥ रोसिं वरजीय वारि ज वारिज अंगना-अंगि, आवि रहई आनन-मिसि, विसि-मिसि वारि-तरंगिं ॥१६॥ कुंडलि चंदलु तप तपइ, जप जपइ वदन वियापि, राजल तोरूं आनन, निवसन अम्हनई आपि ॥९७॥ जल-संयोगि रीणां, लीणां चरण-निवासि, पंकज प्रीणइ सविमिलि, परिमल-बहुल सुवासि ॥९८॥ राजलनां पद-पंकज, अंकज कहिण न जाअई, कनक थाअइ तस किंकर, नूपर नई मिसि जाअई ॥९९॥' उरवरि हेजि हिमाचल, अवल वसइ उरछाहि, नवसर--हार सुचंगति, गंग तरंग--प्रवाह ॥१०॥ काननि निवसइ तिणि हरि, हरि लयिउ जीर्ण लंक, . लोचनि अणुसरई एणीयं वेणी सरल भुअंग ।।१०१।।
काव्यम् प्रतिभवभवां पत्नी यत्नात् हरिः प्रवदद्विभु
नवशशिमुखी प्रेमस्थेमक्षणैकरसाकुलाम्, यदुपतिसुतस्वामिन्नेमे कृतार्थय कामिनी
नवनिजकरस्फारप्राणैर्निपीडन काम्यया ॥१०२॥
फाग
पहिरणि नेत्र-पटुलोय, कुलीय लंक समाय, लोचन अमिय-कचोलीय, चोलोय अंगि न माइ ।।१०३॥ निलवटि ऊगिउ हिमकर, शंकरनी परि सार, तिलक-तणइ मिसि दिन करे, दिनकर-किरण-संभार ॥१०४॥ १. रे दीपकादर भरं, हदि० । वीक्षा (वधारानो पाठ)