________________
नेमीश्वर बाललीला फाग
फाग समुद्रविजय-नृप-नंदन, चंदन-वचन-विलास, वसंत तणे गुणि रातु, पुहुतु रैवत-पासि ॥४९॥ ततखिणि हरि-अंतेउर, नेउर रुणझुणकार, साथिं चालई पालखी, नवलखी बहु परिवार ॥५०॥ साथि थिउ रथिउ माधव, माधव दसइ दसार, तारापति तिहां सोहइ, मोहइ नेमिकुमार ॥५१॥ दिसि दिसि दीपई किं सुक, किं शुक मुख-प्रकारि, किरि कुसमायुध-दीपक, कंपक विरहिणि नारि ॥५२॥ किंशुक-कुसुम कि आंकुडी, वंकुडो विरहिणि--चीत, तिणि कारणि नर नवि रहई, विरहई तिहां भयभीत ॥५३॥ वनि वनि पदमिनी विचरित, रति जिम बहुल विशाल, क्रमि क्रमि करई गुंजारव, आरव मधुकर-माल ॥५४॥ कुमुमायुध अधिकारीय, कारीय मधुकर माल, विरहणि-जण मन तापीअई, आपाअई किरि करवाल ॥५५॥
अर्ध रासउ गोरड-भंग अतिहिं गहगहिया, महिमहिया मुंचकुंद रे... विरहणि-जण-मण-संतापक, ताप करई निसि चंद रे ॥५६॥ फल-भरि भरिया वनि सवि, तरवर मधुकर मधुरु नाद रे, पंचम अमृत महारस कोइ, कोइलि सरलु साद रे ॥५॥
काव्यं कुहरीअई सहकार वनाली, मंजरी रुणझुणई भमराली, कोकिला कलरवि किरि गाअई, अंगि रंगि ललना नवि मामई १५८॥
फाग वासई दश-दिसि-पंजर, मंजरि सिरि सहकार, मनमथ- केरीय ए किरि, सीकिरि भम्रर झुकारि ।।५९॥ फल-भरि शाखा लहकई, बहिकई परिमल-सार प्रीणि उ प्रभु तिणि तरुअरि, उरवरि नेमिकुमार ॥६०॥