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समाजविचारक मनु विकास करे छे, अमुक सामाजिक दरग्जो भोगवे छे । तेनो समाज तेने जीवननी अमुक नीतिरीति तथा अमुक कर्तव्योनी जवाबदारी सोपीने विकास, समुचित वातावरण पूरु पाडे छ । परन्तु व्यक्तिने आ वातावरण ए रीते मळे छे के तेनाथी तेना व्यक्तित्वनो, मनुना मते तेना वारसाने अनुरूप स्वाभाविक वातावरणमा उछेर अने विकास थाय ते ए रोते के साथे साथे ए समाजनी अन्य व्यक्तिओना तथा समग्र समाजना जीवन साथे सवादी होय, उपकारक न बने तो पण समाजनां गतिविधिमा हासकर तो न ज बने । मनु व्यक्तिना समाज प्रत्येना एटले के सामाजिक एकमो, जुथो अने सस्थाोना सभ्य तरीकेना धर्मोनी मीमांसा करे छे त्यारे जे सामाजिक नीतिरीतिनां नियंत्रणो लादे छे तेनी पाळ मा बने दृष्टिभो काम करे छे । तेनी दृष्टि समक्ष एवी सामाजिक संरचना छे जेमा व्यक्ति अने समाजनां गतिप्रगति प्रवृत्ति परस्पर सवादो बनी रहे; परस्परना सहयोगी, उपकारक बनी रहे । मनुए नियत करी आपेली जीवनव्यवस्थानां सामाजिक नीतिरीति एटलेके नियंत्रणोना मूळमां आ उद्देश छ ।
आ कारणे ज सामाजिकदृष्टिए ब्राह्मणने उच्चतम दरज्जो आपीने वास्तविक रोते तो वधुमां वधु सामाजिक नियंत्रणो तेणे ब्राह्मण पर लादेला छे, मनु राजाने ईश्वरतुं सर्जन कहे छे (७.३ भने ८) भने तेने जुदाजुदा देवोनी शक्तिना समन्वय रूप गणे छे (७,४ थी ८) ते साथे राजा पर जे नियंत्रणो मूक्यां छे ते तो 'शाकुन्तल'ना दुष्यन्त राजाने सबोधायेला शब्दोनो न याद आपे के:
स्वसुख तणी न इच्छा कष्ट ठे प्रजार्थे प्रतिदिन, अथवा तो वृत्ति आवी ज तारी अनुभवी शिरपे जो वृक्ष तो तीव्र ताप
करत दूर व्यथा सौ छायथी आश्रितोनी (५, ६ ")
शूद्रो प्रत्ये घणीये वार अणगमो बताववा छतां, द्विज वर्णोनी सेवा ए एकज कर्मनो आदेश तेने माटे को छे (१-९१) एम कहेवा छतां, अन्ते तो मनु शूद्र पर ओछामा ओछी सामाजिक जवाच दरी लादे छे । आम सामाजिक नियंत्रणने मनु सामाजिक दरज्जा साथे सांकळे छ । सामाजिक दरग्जो जेम वधु उच्च, तेम सामाजिक उत्तरदायित्व वधु, तेम सामाजिक नियंत्रणो वधु ए एन जाणे के पायानुं सूत्र छे.