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रमेश बेटाई ना भणी विप्र वेदो, के पुत्र जन्मावी ना कुले,
अधःपात ग्रहे ईच्छी मोक्ष, यज्ञो कर्या विना । (६-३७) मनु सामारिक जीवननी, मानव स्वभाव तथा वृत्तिओनी बास्तविकताने जेवी ने तेवी स्वीकारीने चाले छ, मानव तेना स्वभाव अनुसार जीवनमा योग्य मार्गे ज विकास साधे ते ते समजे छे, स्वीकारे छे, कारण, आम थाय तो ज समाज मर्वगते नदुरस्त भने चेतनामय रहे । ते गृहस्थने श्रेष्ठ गणे छे तेना मूळमां पण आ ज कारण छे । मनुना खूबी ए छे के प्राचीन दार्शनिक श्रद्धाओ तेणे अति महन स्वाभाविक रोते आम व्यक्तिना जीवनमां गूंथी लोधी छे । स्वाभाविक अने मानवमहज जीवन जीवती व्यक्ति ज स्वाभाविक भने तन्दुरस्त समाज सर्जी शके ने ते जाणे छे, स्वीकार छ । जोवन प्रत्ये उदासीनता केळवतां शीखवता, ससार तरफ भागेडुवृत्ति केळवना मात्र अध्यात्म दर्शननी सामे मनुनी आ महदंशे दार्शनिक विचारणा दृढ मनोवळना व्यक्ति अने समाज माटे ऊभी छे । अने छतां अपवादने ते अपवाद तरीके मान्य करे छे, सन्माने छे, ते सिद्ध करे छे के मनुमा वैचारिक जडता नथी । व्यवहार भने आदर्श ए बेनो सुभग समन्वय मनु सतत करतो रहे छे । आपत्कालना अनेक अपवादोनो स्वीकार पण जीवननी भने मानवनी मनोवृत्तिनी वास्तविकताना स्वीकारनुं प्रमाण छे । मानवस्वभावनो आवो आत्मीय, वास्तविक अने गूढ परिचय तेना पछोना समाजविचारकोए भाग्येज दाखल्यो छे। (११) सामाजिक नियन्त्रण
एवी एक सामान्य मान्यता छ के भारतीय समाजमा व्यक्ति पर वधारे पड़ता भने तेनी गति प्रगति-प्रवृत्तिमा अवरोधक एवां नियंत्रणो छ । भारतीय समाजमा व्यक्तिना मुक्त विकासनो अवकाश नथी, कदी हतो पण नहीं । पोतानी मनोकामना अने महत्त्वाकांक्षा बर लाववामां मदद करे एवं वातावरण आ वधारे पडना नियंत्रणोने कारणे विक्षुब्ध थाय छे ।
छटो सदी बाद भारतीय समाजजीवनमा जे रूढिग्रस्तता अने स्थगितता पेसी गयां ते पहेलांना समयने, विशेषे करीने मनु तथा तेना समयना भारतीय समाजने आ आरोपो लागु पडता नथी । व्यक्तिना जीवन पर अमुक सामाजिक नियंत्रणो होय ज एतो स्वाभाविक छे, कारण, व्यक्ति अमुक संस्कारवारसो लईने जन्मे छे ने समाजजीवनमा उछेर पामो पोताना व्यक्तित्वको