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समाजविचारक मनु आ वारसो सहज, स्वाभाविक अने व्यक्ति तथा समाज माटे श्रेयस्कर बने तेवी समाजरचना ते वांछे छे । तेथी ज तो बने तेटली ओछी वर्णसंकर प्रजा जन्मे ते बाबत तेनी उत्सुकता प्रगट थाय छे । पुत्रोमां पण ते सवर्णा पत्नीमा उत्पन्न करवामां आवेला औरस पुत्रने श्रेष्ठ माने छे, तेना मूळमां जन्मनार व्यक्तिने स्वाभाविक अने ए रीते उचित वारसो मळे ते ज तेनी दृष्टि छ । साथे जन्मनार वर्णसंकर होय के अन्यथा होय, परन्तु तेने वातावरण तथा सामाजिक दरज्जो पण अनुरूप अने उचित मळी रहे ते बाबत पण ते एटलो ज उत्सुक छ । तेणे वर्णोमा जे जातिव्यवस्था कल्पी छे तेना मूळमां रूढि के ब्राह्मणेतर के अन्य द्विजेतर जातिओ प्रत्येनी सूग करतां विशेष काम करे छे समाजने गुरुतम रीते उपकारक थाय ते स्वरूपे दरेक व्यक्तिने योग्य, अनुकूळ वातावरण तथा सामाजिक दरज्जो मळी रहे ते दृष्टि । मने आ रीते व्यक्तिने स्वाभाविक वारसो, उचित वातावरण तथा तदनुसारी सामाजिक दरज्जो मळी रहे ते साथे समन्वित रीते व्यक्ति माटे आधारभूत समाजनी पण जरूरियातो सहज रीते पूरी पडे ते दृष्टि काम करे छे । ए न भूलवु घटे के सामाजिक मूल्यो जाळवी राखवानो मनुनो प्रयत्न छे रूढिप्रस्तता अने सामाजिक स्थगितता समाजमां पाछळथी पेठो छ । व्यक्ति एटले तेने मन अमुक वारसो तथा वातावरणनो समन्वय छे । अने तेनी दृष्टि ए ज छे के मा समन्वय एवो होय जे व्यक्तिने विकासनो गुरुतम अवकाश आपे, साथे समाजने तेनो गुरुतम लाम रहे । व्यक्तिनो एकांगी विकास के तेनी प्रगतिमा अवरोध बन्ने समाजने माटे अपकारक बनी शके ते ते जाणे ज छे। (१०) मानववृत्तिओ अने विकास
चार पुरुषार्थोना साहजिक मार्ग व्यक्तिनी अने तेनी पाछळ समाजनी गतिनी वधुमां वधु व्यवस्थित विचारणा मनुए करी छे । अने नोधपात्र ए छे के आ माटे मानवमन, वृत्तिभो, आकांक्षाओ, वासनाओ, बधाने बराबर रीते समजीने, तेने मनुनी भाषामां कहीए तो योग्य श्रेयना मार्गे वाळीने मनु व्यक्ति तथा समाजना धर्मोंनी विचारणा करे छे । ते स्वीकारे छे के :
असंख्य ब्राह्मणो जाणो कुमार ब्रह्मचारी के
स्वर्गने पुण्यथी पाम्या प्रजा ना दईने कुले । (५-१५९)*
छता वास्तविक रीते तो आ पने मन एक अपवा ( ज छे, ज्यारे सामान्य नियम तो प ज छे के :