________________
रमेश बेटाई तरीकेना नथा सामाजिक जीवनमा मानां दूरगामी परिणामो होई शके ते स्पष्ट छ । तेनुं ससारधर्मनुं निरूपण मानवना 'आ जोवन'ने स्पर्श छे, साथे परजीवननो ख्याल तो तेमा छ ज । (८) 'काम'नो ख्याल
आना ज अनुसधानमां मनुए 'काम'नो ख्याल उपसाव्यो छे । काम एटले मनुने मन 'इच्छा, आकांक्षा, प्राप्तव्यनी झखना ।' माथी कामनो ते विशाळ अर्थ करे छे । तेने अनुलक्षीने ते कहे छे के :
कामात्मता ना प्रशस्त, अहीं छे ना अकामता, वेदनु ज्ञान छे काम्य कर्मयोग य वैदिक । (२-२)२५ सकल्पमूल छे काम, यज्ञो सकल्पसभव्या, व्रतो ने यमधर्मोए सर्वे सकल्पसभव्या । (२-३)" क्रिया अकामनी कोई जगमा जोई जाणी ना, मनुष्यो करता जे के ते ते चेष्टित कामर्नु । (२-४)६७ तेमां वर्ती योग्यरीते पामे अमर लोकने, कल्पियां जगमा जे के सिद्ध सौ कामने करे । (२-५)४
वेद, वैदिक कर्मयोग, यज्ञो, व्रतो, वधु ज जो काममूलक होय तो ए तो तदन स्वाभाविक छे के काम भने तेनुं जेमां मूळ छे ते संकल्प विना आ जगतमां कश। ज गति, क्रिया सभवे नहीं। अने गति तथा क्रिया न संभवे तो व्यक्ति तथा तेना समाजनुं जीवन ज न सभवे । माटे ज ए जरूरी छे के व्यक्ति पोताना मा तमाम कामोमां योग्यायोग्यनी पूरी विचारणा करे, योग्यने अनुसरे भने अयोग्यनो त्याग करे । आम थाय तो ससार चाले, व्यक्ति अने समाज चाले, व्यक्ति अमरलोक सुधी गति करवानी अधिकारी बने । व्यक्तिनी अने तेनी पाछळ समग्र समाजनी चेतना अने गति काममूलक छे ते वात मनु आ रीते समजावे छ । भने तेना योग्यायोग्यनो आधार व्यक्ति पर ज छे एम ए माने छ । (९) वारसो अने वातावरण
माना परथो एक अगत्यनो प्रश्न उपस्थित थाय छ । वारसो भने वातावरण ए बेना व्यक्ति परना प्रभाव चापत मनु शु माने छे । मनुए जे आखी वर्णाश्रमथी अन्वित अने जूथो, एकमो तथा संस्थानोमां वहें चायेलो समाजरचना कल्पी छे तेमां व्यक्ति पर वारसानो प्रभाव नो होय न ते ते सहज भावे स्वीकारी ले छे ।