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समाजांवचारक मनु
तमाम समाजमा अन्तर्गत छे । आथी मुख्यत्वे मानव सबंधोनी न चर्चा करवा छतां धर्मशास्त्रनी दृष्टिए मानवना समाजमां देवो, ऋषिओ, पूर्वजो, मानवो तथा पशुपंखीना जगतनो समावेश थाय छे । अने व्यक्ति तथा समाजना संबंध परत्वे मनुनो ख्याल एवो छे के व्यक्ति अने समाज बच्चे लघुतम सधर्ष रहे अने गुरुतम सहकार तथा सवादिता सधाय ए प्रकारनी समाजरचनानो ख्याल राखी धर्मशान पोताना विचारो विधेयकरूपे निरूपे छे । "आपणे परस्परनुं सभावन करीए ते समये ते भावो आपणने प्रिय बनो"" ए सिद्धान्त व्यक्ति व्यक्तिना संबंध जेटलो ज व्यक्ति अने समाजना सबंधने लागु पडे छे । व्यक्ति अने समाजना परस्पर सबंधनी आ समस्या आधुनिक समाजशास्त्र विगते वर्चे छे अने ते चर्चामा व्यक्तिने समाजनी जरूरियात, व्यक्ति व्यक्तिनो संबंध, सामाजिक नियत्रणो भने तेनां परिणाम, व्यक्तिनी अंगत माकांक्षाओ अने समाज, विभिन्न सामाजिक जूथो भने संस्थाओना सभ्य तरीके व्यक्ति, इत्यादि प्रश्नो वैज्ञानिक रीते चर्चवामां आवे छे । मा संबंधोनी वास्तविकताना ऊडाणमां उतरी तेनां मूळगत सत्यो अने रहस्यो तारववानो ख्याल छ । साथे आ चर्चा आडकतरी रीते व्यक्ति भने समाजना संबंधो वधु घनिष्ठ अने आत्मीय कई रीते बने, तेमनी वच्चे लघुतम सघर्ष अने गुरुतम सहकारनी भूमिका कई रीते रचाय ते पण तारवी आपी शके छे । मनुए आ समस्या पर घणो विचार कर्यों छे । व्यक्तिने, तेना बीजारोपणथी मांडीने समाजनी शी आवश्यकता होय छ, व्यक्तिना सामाजिक सस्थामोनी साथेना सबंधो, विभिन्न सामाजिक संस्थामोना परस्पर संबंधो, विभिन्न सामाजिक सस्थाओना सभ्य तरीके व्यक्ति, वगेरे प्रश्नो पर मनुए विचारणा करीने ज पोताना विधिनिषेधो आप्या छे । आना परथी स्पष्ट थाय छे के मनुना मते समाज तथा तेनी सामाजिक सस्थाओ, ए तमामनी तंदुरस्ती, परस्पर सहकार वगेरे पर आधार राखे छे । मनुना निर्देशो बतावे छे के तेने मते व्यक्ति तथा समाज समान महत्त्व धरावे छे बनेनो सहयोग, सहकार अने तजनित उत्कर्ष अने उभयर्नु स्वाभाविक अने तदुरस्त तथा प्रगतिकर जीवन ए एमनो आदर्श छ । परन्तु समाज ए एक एवु तत्त्व छे जे व्यक्तिओ थकी ज संभवे छे, व्यक्तिनी चेतना तेनामां चेतनानो आविर्भाव करे छे । माथी व्यक्ति तथा समाज बनना आधार तरीके व्यक्तिने ज गणी मनु पोताना आ विचारो आपे छे । (५) पायानी मान्यताओ
अहीं एक प्रश्न उद्भवे छ । व्यक्ति विभिन्न सामाजिक जूथो, एकमो 'अने