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________________ ३२ रमेश बेटाई छे, आम व्यक्ति आ सर्वे विभिन्न सामाजिक सस्था ओभी सभ्य छे, आ व्यक्तिभोथी सामाजिक सस्थाओ वगैरे अने तेनाथी समाज बने छे, समाज छे एवी प्रतीति सामाजिक एकमो, जूथो अने संस्थाओथी थाय छे । आम मनुनी समाजरचना मां त्रण अंगो छे- व्यिक्त, व्यक्तिमोथी बनती सामाजिक सस्थाओ, अने ते सस्थाओथी बनतो समाज | मनु व्यक्तिना घर्मोनी ज विशेष चिन्ता करे छे ते बतावे छे के तेने मते व्यक्ति जो धर्मपरायण एटले के आचार भने कर्त्तव्यपरायण बने तो आपोआप आ सामाजिक संस्थाओ, एकमो वगेरे, पटले के समाज सुदृढ अने चेतनवंत बने । पी. गिलबर्ट कहे छे के : " सामान्य रीते सस्थानी व्याख्या आ रीते करवामां आवे छे : व्यक्ति भने जूथोना सबंधोने दोरनारा केटलांक टकी रहेता भने मान्य विधिस्वरूपो” "अने "कोई पण कायमी मानवीय समूहनी विशिष्ट एजन्सीओ एटले संस्थाओ ए एवां चक्रो छे जेना पर मानवसमाज गति करे छे; एवां यंत्रो जेना द्वारा समाज पोतानी प्रवृत्तिभो चलावे छे।" "आ दृष्टि सामाजिक संस्थाको भने समाजना मनुना ख्यालमा केटले अंशे निहित छे । व्यक्तिनो समाज साथैनो सबंध सामाजिक संस्था साना ना संबंध द्वारा व्यक्त थाय छे । व्यक्तिनी समाज बाबतनी समानता सामाजिक सस्था साथेना तेना आपलेना सबंधमां तरी आवे छे । आथी ज मनुने माटे व्यक्ति अने सामाजिक संस्था, एकम, जूथ विद्यमान छे अने ते बेना समन्वित भस्तित्वमां समाजनुं अस्तित्व अनुभवाय छे । मनुनुं धर्मशास्त्र आम व्यक्तिने केन्द्रमा राखे छे अने तेनां कर्त्तव्योनो ज प्रधानपणे विचार करे छे । परिणाम ए आवे छे के समग्र समाजनां गति, स्थिति, प्रगति मादिमां व्यक्तिनुं सुख समाई जाय छे। भारतीय समाजशास्त्र माने छे के समग्र समाजना एक अविभाज्य तत्त्व तरीके व्यक्ति सतत कर्त्तव्यशील रहे तो तेने तेनां सुख अने अधिकारो तो पाळी मळी ज रहे छे; परन्तु व्यक्ति पोते समाजनुं एक अविभाज्य अंग अथवा तत्त्व है ते मूली केवळ स्वाधिकार अने स्वना सुखनो ज विचार करे तेमां समाजनी स्थिरता, स्वस्थता के प्रगति नथो अने तेथी अन्ते व्यक्तिने पण अपेक्षित अधिकारनो भोगवटो के सुख मळतां नथी । आथी ज धर्मशास्त्रनी दृष्टिए समाजनो ख्याल एबो छे के व्यक्ति जेनी जेनी साथे अल्प या बहु प्रमाणमां, सीधी के भडकतरी रीते, छैणदेणना एटके के ऋणना संबन्धे बधाय ते तमाम प्रत्ये तेनुं कईकने कईक कर्त्तव्य छे अने ते
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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