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________________ सुषमा कुलश्रेष्ठ यज्ञ में जाना रूप विघ्न आने से बीच में बाधा आई किन्तु निर्णय हो जाने से कथा आगे बढ़ चली । अतः द्वितीय सर्ग में 'बिन्दु' अर्थप्रकृति हुई। पताका ____ जो प्रासङ्गिक कथा दूर तक चलती रहे उसे 'पताका' अर्थप्रकृति कहते हैं।' श्रीकृष्ण का इन्द्रप्रस्थ - प्रस्थान तथा युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ-सम्पादन एक दूरव्यापी कथानक है । अतः यहाँ पताका अर्थप्रकृति है (तृतीय सर्ग से चतुर्दश सगै तक)। प्रकरी प्रसङ्गागत एकदेशस्थित चरित को 'प्रकरी' कहते हैं। प्रकरी-नायक का अपना कोई फलान्तर नहीं होता । शिशु० के षोडश सर्ग में शिशुपाल का एक प्रगल्भवाक् दूत श्रीकृष्ण के सम्मुख उपस्थित हो श्लेष द्वारा चर्थक वचन कहता है । यह प्रसङ्गागत एकदेशस्थित चरित है । अतः यह 'प्रकरी' है और वह दूत प्रकरी-नायक है । इस दूत का अपना कोई फलान्तर नहीं है । वह तो केवल अपने माश्रयदाता राजा शिशुपाल के आदेश पर ही ऐसे वचन बोलता है । प्रकरी का अपना कोई फलांतर नहीं होता है किन्तु प्रकरी प्रासङ्गिक इतिवृत्त मुख्य इतिवृत्त के विस्तार में सहायक होता है। वाग्मी दूत के वचनों का अलग से कोई फल नहीं है किन्तु वे मुख्य कथा के विकास में सहायक सिद्ध होते हैं । उसके कटुवचनों से श्रीकृष्ण क्रुद्ध होते हैं, श्रीकृष्ण तथा शिशुपाल की सेना में तुमुल युद्ध होता है और अंत में प्रोकृष्ण शिशुपाल का सिर काट देते हैं। इस प्रकार यह प्रकरी प्रासङ्गिक इतिवृत्त मुख्य कथा के विकास में सहायक है। कार्य जो प्रधान साध्य होता है, जिसके लिए सब उपायों का आरम्भ किया जाता है, जिसकी सिद्धि के लिए सब सामग्री एकत्रित की जाती है उसे 'कार्य' अर्थप्रकृति कहते हैं। शिशु० के विंश सर्ग में श्रीकृष्ण तथा शिशुपाल के युद्ध के पश्चात् श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध किया जाना 'कार्य' अर्थप्रकृति है। १. दशमक- सानुबन्धं पताकाख्य...११३ १. दशरूपक- .......प्रकरी च प्रदेशमा ११॥ ३. साहित्यपर्पण-अपेक्षित तु सत्याध्यमारम्भो यभिबन्धनः । समापन तु यस्मिध्ये तत्कार्यमिति सम्मलम् ६६९-७०
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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