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________________ नधीन उपनिषदों की दार्शनिक चर्चा केनोपनिषद् के प्रथम खंड का प्रश्न है: “मन, प्राण, वाणी, चक्षु, श्रोत्र, किसके द्वारा सचालित हो कर क्रियाशील बनते हैं" और उत्तर दिया गया है: "ब्रह्म के द्वारा"। इसी प्रकार वहां तीसरे खंड में यह मान्यता प्रतिपादित की गई है कि ममि तथाँ वायु अपने बल पर क्रियाशील नहीं होते ब्रह्म के बल पर क्रियाशील होते हैं । बीच के दूसरे खण्ड में आता है ब्रह्म के वर्णन सबन्धी एक प्रसिद्ध उपनिषद वाक्य "यस्यामतं तस्य मतं मन यस्य न वेद स । अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम् ॥” २ । ३। पहले खण्डकी चर्चा के प्रसंग में भार दे कर कहा गया है कि यद्यपि ब्रह्म मन, प्राण, वाणी आदि का संचालन करता है लेकिन वह स्वयं, मन, प्राण, वाणी आदि का विषय नहीं । केनोपनिषद् की ये चर्चाएं अपेक्षाकृत अ-प्रौढ़ हैं (तीसरे खण्ड में तो सीधे सीधे एक कहानी सुनाकर सिद्ध किया गया है कि अग्नि तथा वायु ब्रह्म के बल पर क्रियाशील होते हैं ) लेकिन वे अच्छे द्योतक हैं याज्ञवल्क्य के अनुयायियों की मनःस्थिति का । यहां हम स्पष्ट ही आत्मा, ब्रह्म तथा मात्मनहत्य सबन्धी मान्यतामों का प्रतिपादन पा रहे हैं, साथ हो यहां हमें बतलाया जा रहा है कि लोकसाधारण का ज्ञान ब्रह्म के संबन्ध में अज्ञान सिद्ध होता है तथा ब्रह्म संबन्धी ज्ञान लोकसाधारण की दृष्टि में भज्ञान सिद्ध होता है। अब ये ठीक ऐसी बातें थीं जिन्हें सुनने के लिए उम युग का दार्शनिक मानस तैयार न था । इसी प्रकार का एक दृष्टान्त उपस्थित करती है ईशोपनिषद की ईश्वर तथा ब्रह्म संबन्धी मान्यताएं । वहां प्रथम श्लोक है - "ईशावास्यमिदं सर्वं यत् किश्चिज्जगत्यां जगत् , तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य चिद्धनम् ।" और पांचवां श्लोक है-- तदेजति तनेजति तहरे तदन्तिके । तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बायः ॥" यहाँ प्रथम श्लोक में उस प्रकार की बात की गई है जैसी ईश्वरवादी दार्शनिकों ने ईश्वर संबन्धी चर्चा के प्रसंग में की है (यथपि प्रस्तुत बात की आत्मसंगति स्पष्ट नहीं ) जबकि पाचवें श्लोक में याज्ञवल्क्य की ब्रह्म संबन्धी चर्चा का पल्लवन हुआ लगता है । लेकिन ईश्वर तथा ब्रह्म के बीच ठीक संबंध क्या है इस प्रश्न पर कोई प्रकाश यहाँ नहीं पड़ता । यह सच है कि ईशोपनिषद् एक अत्यन्त लघुकाय तथा म-प्रौढ़ उपनिषद्
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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