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कृष्णकुमार दीक्षित इन उपनिषदों में निश्चय ही नहीं। इस बात पर थोड़े विस्तार से विचार कर लिया जाय ।
नवीन उपनिषदों को चार-चार के दो वर्गों में बांटा जाता है जिनमें से पहला अपेक्षाकृत प्राचीन है, दूसरा अपेक्षाकृत अर्वाचीन । पहले उपवर्ग में माते है ईश, केन, कठ, मुण्डक, दूसरे में प्रश्न, माण्ड्क्य श्वेताश्वतर, मैत्रि । पहले उपवर्ग में पड़नेवाले चारों उपनिषद् सयोगवश पयबद्ध हैं, दूसरे उपवर्ग में पड़ने वालों में से एक श्वेताश्वतर को छोड़कर शेष तीन गद्यबद्ध हैं । इमीलिए कभी कभी श्वेताश्वनर को प्रथम उपवर्ग में डालकर कहा जाता है कि नवीन उपनिषदों में से पधनद्ध उपनिषद् अपेक्षाकृत प्राचीन हैं, गद्यबद्ध उपनिषद् अपेक्षाकृत अर्वाचीन । वस्तुतः श्वेताश्वतर को इस सम्बन्ध में अपवाद मानना हो ठीक रहेगा । जो भी हो नवीन उपनिषदों को दार्शनिक चर्चा के अपने प्रस्तुत सामान्य मूल्यांकान में हम इस कालाधारित उपवर्गीयकरण का कोई विशेष उपयोग नहीं करने जा रहे हैं । ध्यान केषन इतना रखना है कि नवोन उपनिषद् प्रायः इकाईबद्ध रचनाएं है -प्राचीन उपनिषदों की भांति विभिन्न समयों में तैयार हुई स्वतंत्र ' रचनाओं का संकलन नहीं और इसलिए यहाँ यह आशा करना विशेष अनुचित न होगा कि जिन उपनिपदों में चर्चा का स्तर अपेक्षाकृत प्रौढ़ हों वे अपेक्षाकृत भर्वाचान हो । वस्तुतः नवीन उपनिषदों के जिस उसवर्गीकरण को भोर अभी इंगित किया गया था उमका मावार हो है इनको चर्चाओं का परस्पर तुलना में प्रौढ़ और मप्रौढ़ होना । देखना यह है कि वे सभी उपनिषद् प्रौढ़ता की दृष्टि से अपने युग का तकाजा पूरा करने में किस प्रकार असफल सिद्ध हुए।
याज्ञवल्क्य ने अपने अनुयायियों के लिए विरासत रूप में छोड़ी थी आत्मा, ब्रह्म तथा आत्म-प्रक्य सम्बन्धी मान्यताएं । यहाँ यह मानकर चला गया था कि
आस्मा द्वारा संचालित शरीर तथा ब्रह्म द्वारा सचालित बाह्य जड़ जगत् वास्तविक पदार्थ हैं। अतः नवीन उपनिषदों के रचयितामों के सामने प्रश्न था शरीर, बाह्य बड़ जगत् , आत्मा तथा ब्रह्म संबन्धो मान्यताओं को इस प्रकार पल्लवित करना कि मात्म-बौक्य का सिद्धान्त अक्षुण्ण बना रहे । और क्योंकि भव नए युग में ईश्वर की मान्यता भी इन उपनिषदों ने स्वीकार करली थी उनके सामने एक प्रश्न यह भी था कि इस नई मान्यता को उस पुरानी मान्यता राशि के बीच स्थान कैसे दिलाया जाए । इन प्रश्नों के दृष्टिकोण से नवीन उपनिषदों को सामग्री पर विहंगमदृष्टि डाल ली जाए ।