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________________ नवीन उपनिषदों की दार्शनिक चर्चा कृष्णकुमार दीक्षित प्रस्तुत प्रसंग में नवीन उपनिषदों से हमारा आशय उन ८ उपनिषदों से है जो मुख्य १३ उपनिषदों में से प्राचीन ५ उपनिषदों को निकाल देने से बच रहते हैं। प्राचीन पाँच उपनिषद् है :- छान्दोग्य, बृहदारण्यक, ऐतरेय, तैत्तिरीय, कौषीतकि; मतः नवीन ८ उपनिषद हुए :- ईश, केन, कठ, मुण्डक, प्रश्न, माण्डूक्य , श्वेताश्वतर, मैत्रि । प्राचीन उपनिषदों के सम्बन्ध में यह कहना संभव नहीं हो पाता कि इनमें से अमुक अमुक की अपेक्षा प्राचीन है और वह इसलिए कि उनमें से प्रायः प्रत्येक प्राचीन-नवीन सामग्रो का सम्मिश्रण है । यह सम्मिश्रण इसलिए सरलता से संभव बन सका है कि प्रस्तुत प्रायः सभी उपनिषद् स्वतंत्र चर्चाओं का संकलन रूप है कोई इकाईबद्ध रचना रूप नहीं। अतः प्राचीन उपनिषदों में प्राचीन-नवीन का पृथककरण करने का कदाचित् एक मात्र साधन है उनमें प्रतिपादित सिद्धान्तों को प्रौढतामप्रौढता की परख करना। निःसन्देह यह सदा तथा सर्वत्र संभव होता है कि एक मप्रौढ रचना एक प्रौढ रचना की अपेक्षा उत्तरकालीन हो और प्राचीन उपनिषदों के संबंध में भी ऐसा हुआ रह सकता है, लेकिन प्रस्तुत प्रसग में इस कठिनाई को पार करना कदाचित् संभव नहीं । जो भी हो, प्राचीन उपनिषदो को सामग्री का प्रौढता- मप्रौढता के माधार पर पृथक्करण हमें उपनिषत्कार वर्ग के बौद्धिक विकास का सामान्य परिचय करा ही देगा भले ही यह बात अपने स्थान पर सच बनी रहे कि कतिपय उपनिषत्कारों ने बौद्धिक विकास की एक अगली मंजिल पर अवस्थित रहते हुए भी इस विकास की एक पिछडी मजिल के अनुरूप चर्चा पल्लवित की। इस दृष्टि से देखने पर बृहदारण्यक में याज्ञवल्क्य द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को प्राचीन उपनिषदों का प्रौढतम पिद्धान्त कहा जा सकता है और वहां यह भी देखा जा सकता है कि इस सिद्धान्त पर पहुँचने से पूर्व उपनिषत्कारों के चिंतन में कौन कौनसी मंजिलें पार की हैं। दो शब्दों में याज्ञवल्क्य का सिद्धान्त यह है कि एक व्यक्ति के मानस-शारीरिक क्रियाकलापों का सचालक भूत तत्त्व 'मात्मा' है, जगत् के क्रिया-कलापों का संचालक भूत तत्त्व 'ब्रह्म', साथ ही यह कि यह आत्मा तथा यह ब्रह्म परस्पर एक रूप हैं। याज्ञवल्क्य के पूर्ववर्ती काल में चिन्तन की एक मंजिल
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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