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________________ पाइअ-सह-महण्णवों में अनुपलब्ध शृंगारमञ्जरी की शब्दावली के. आर. चन्द्र श्रृंगारमन्जरी सट्टक की रचना विश्वेश्वर के द्वारा १८वीं शती के प्रारंभिक काल में की गई है। उस समय प्राकृत बोलचाल की भाषा नहीं थी और अपभ्रंश भाषा भी आधुनिक भाषाओं में बदल रही थी। इस परिस्थिति के कारण इस सहक में जीती-जागती प्राकृत भाषा नहीं मिलती। विश्वेश्वर संस्कृत भाषा के विद्वान थे अत प्राकृत व्याकरणों के आधार से संस्कृत का प्राकृत बनाकर इस सट्टक की रचना की है। ऐसा मालूम होता है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो 'पाइय. सट्टनहण्णवो' में उपलब्ध नहीं है। ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि इस प्राकृत कोष के सम्पादन के समय तक श्रृंगारमझेरी प्रकाश में नहीं आयी थी । यहाँ पर ऐसे ही शब्दों का संग्रह किया जा रहा है जिससे आगामी प्राश्न कोष में उन्हें स्थान मिल सके। इन नये शब्द। की विशेषता निम्न प्रकार से दर्शायी जा सकती है: १. संस्कृत के आधार से बने हुए शब्द २. उपसर्ग लगाकर बनाये गए शब्द ३. भिन्न अर्थ वाले शब्द ४. पौराणिक विशेष-नाम वाले शब्द ५. व्यक्तिविशेषनाम पाले शब्द ६. असंकलित रूप वाले शब्द अग्गवीअ ४ १३ (अप्रबीज)=एक असुर का नाम अणिद्धारिय. १. १२ ८ (अनिर्धारित)=अनिश्चित अणुसय ४४ (अनुशय) ईर्ष्या, दुश्मनी अण्णपरदा (आ) १,२९,३५ (अन्यपरता)-अन्यसम्बन्धी अद्धेन्दु १.१ (अर्द्धन्दु)-अर्द्धचन्द्र [ जब कि 'अद्धोरु' इत्यादि शब्द पा.स.म में मिलते है ] अब्भमु १.१६ (अभ्रमु)-ऐरावत हस्ति की प्रिय हस्तिनी अब्भुवाअ १२६ (अभ्धुपाय)-प्राप्ति का उपाय, पहेच अहिबद्ध ११ (अधिबतू)-गाढ बंधा हुआ [जब कि 'अहिमय, अहिकिच्च' इत्यादि शब्द पा.स.म. में मिलते है]
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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