________________
४४
मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी
में द्विभुज के साथ ही चतुर्भुज अम्बिका का चित्रण भी लोकप्रिय रहा है। दिगम्बर परम्परा की सर्वाधिक चतुर्भुजा मृर्तिया खजुराहो से प्राप्त होती हैं। दिगम्बर स्थलो की तुलना में अम्बिका की चतुर्भुज मूर्तियां श्वेताम्बर स्थलों पर कम हैं, जब कि श्वेताम्बर प्रन्ध द्विभुज के स्थान पर सर्वदा अम्बिका के चतुर्भुज स्वरूप का ही उल्लेख करते है। साथ ही जहा श्वेताम्बर स्थलो पर परम्परा के अनुरूप चतुर्भुज, अम्बिका की ऊर्व भुजाओं में पाश एव अंकुश नही प्रदर्शित है, 05 वही दिगम्बर स्थलों (खजुराहो, देवगढ़, लखनऊ मंग्रहालय) पर परम्परा के विरुद्ध ऊर्ध्व भुजाओं में पाश अंकुश प्रदर्शित किया है। श्वेताम्बर स्थलों पर अम्बिका की स्थानक मूर्तियां दुर्लभ है, पर दिगम्बर स्थला पर समान रूप से आसीन और स्थानक मूर्तियां लोकप्रिय रही है। कंबल तारंगा के आजतनाथ मन्दिर (श्वेताम्बर) पर स्थानक अम्बिका की एक मृति उत्कीर्ण है। अग्बिका के दृमरे पुत्र का प्रदर्शन स्वतन्त्र मूर्तियों में ही लोकप्रिय रहा है। इवेताम्वर स्थलों के एकरूप स्वरूप के विपरीत दिगम्बर स्थलों पर चतुर्भुज अम्बिका के निरूपण में कई प्रकार प्राप्त होते हैं। आम्रलुम्बि एवं पुत्र के माथ ही चतुर्भुज अम्बिका को पद्म , पद्म-पुस्तिका, अंकुश, पाश एवं त्रिशूलघण्ट जैसे अपारम्परिक आयुधा से युक्त भी प्रदर्शित किया गया। खजुराहो की एक अम्बिका मनि (१६०८) में यक्ष-यक्षी युगल का उत्कीर्णन अम्बिका मूर्ति में हुए विकास की अन्तिम परिणति है। ६५ काल विमलासही और नारगा क का उदाहरण में चतुर्भुन अम्बिका के माथ पाश का
प्रवर्णन प्राप्त होता है। * कवल नारगा, जालोर एव विमलवसही की तीन चतुर्भुज मूर्तियों में ही अम्बिका के निरूपण में स्वरूपगत भिन्नता प्राप्त होती है। अन्य सभी चतुर्भुज उदाहरणों मे तीन भुजाओ में आफ्युम्वि और चौथी मे पुत्र स्थित है।