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________________ उत्तर भारत मे गैन यक्षी अम्बिका का प्रतिमानिरूपण की भुजाओं में आम्रलुम्बि एवं पुत्र (गोद में) स्थित है। यक्षी का दूसरा पुत्र सामान्यत वाहन सिंह के समीप ही कहीं आमूर्तित किया गया है। यक्षी के दोनों पार्यो में स्त्री-पुरुष सेवक आकृतियां उत्कीर्ण हैं, जिनकी भुजाओं में सामान्यत चामर प्रदर्शित है। द्विभुज अम्बिका की एक मूर्ति कर्नाटक राज्य के अंगदि स्थित जैन बस्ती से प्राप्त होती है। त्रिभंग में आम्रवृक्ष के नीचे अवस्थित यक्षी की दाहिनी भुजा में आम्रलुम्बि प्रदर्शित है, जब कि बायीं समीप खड़े पुत्र के मस्तक पर स्थित है। पुत्र की एक भुजा में फल और दूसरे मे दण्ड प्रदर्शित है। दक्षिण पार्व में वाहन एवं दूसरा पुत्र आमूर्तित है। अकोला जिले के मुर्तजापुर से प्राप्त एक द्विभुज मूर्ति सम्प्रति नागपुर संग्रहालय में संकलित हैं। आम्रवृक्ष के नीचे खड़ी अम्बिका के शीर्ष भाग में नेमि की मूर्ति उत्कीर्ण है। सिंहवाहना यक्षी आम्रलुम्बि एवं फल से युक्त है। प्रत्येक पार्य में उसका एक पुत्र खड़ा है। समान विवरणों बाली एक अन्य मूर्ति (आसीन) श्रवणबेलगोल के चामुण्डराय बस्ती से प्राप्त होती है। त्रावनकोर राज्य के चितराल से प्राप्त एक मूर्ति मे दाहिनी भुजा की वस्तु अस्पष्ट है, और बायीं नीचे लटक रही है। वाम पार्श्व में अम्बिका के दोनों पुत्र उत्कीर्ण हैं।" दक्षिण भारत में यक्षी का चतुर्भुज स्वरूप में भी चित्रण प्राप्त होता है। जिन कांची के भित्ति चित्रों में चतुर्भुज अम्बिका अंकित है। पद्मासन में विराजमान यक्षी की उर्ध्व भुजा में अंकुश, पाश, एवं निचली में अभय, घरद प्रदर्शित हैं। बर्गेस ने भी कन्नड़ परम्परा पर आधारित चतुर्भुजा कुष्माण्डिनी का चित्र प्रकाशित किया है101 सिंहवाहना कुष्माण्डिनी की गोद में उसके दोनों पुत्र अवस्थित है। जिसे वह अपनी निचली भुजाओं से सहारा दे रही है। यक्षी की ऊर्थ्य भुजाओं में खडूग एवं चक्र स्थित है। समस्त अध्ययन से स्पष्ट है कि सभी क्षेत्रों में समान रूप से अम्बिका का द्विभुज स्वरूप ही सर्वाधिक प्रचलित रहा है। जिन-संयुक्त मूतियों में अम्बिका सदैव द्विभुजा है। केवल स्वतन्त्र मूर्तियों में अम्बिका को चतुर्भुजा भी निरूपित किया गया है। सिंहवाहना अम्बिका के साथ परम्परा के अनुरूप ही आम्रलुम्थि एवं पुत्र और शीप' भाग में आम्रफल के गुच्छकों का प्रदर्शन सर्वत्र लोकप्रिय रहा है। दिगम्बर स्थलों की जिन-संयुक्त मूर्तियों में सिंह वाहन का प्रदर्शन दुर्लभ है। सातव्य है कि दिगम्बर ग्रन्थों में द्विभुज अम्बिका का ही उल्लेख प्राप्त होता है, पर मूर्त अंकों 80 शाह, 'आइकनामफी अम्बिका', पृ. 154. 8 तदेव, 5 154-155. 88 तदेव, पृ 155. तवेव, पृ. 156. 00 तदेव, प. 158. 01 अगेंस, जेम्स, दिगम्बर जैन आइकनाप्रफी', ध इण्डियन एण्टिक्वेरी, ख. 12, 1903, पृ. 463, फलक 4, चि. 22. " केवल दिगम्बर परम्परा के एक तांत्रिक प्रथ-अम्बिकाताटक मे ही चतुर्भुज एवं अष्ट भुज अम्बिका का ध्यान किया गया है।
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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