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________________ मारुनि नन्दन प्रसाद तिवारी ग्यारावामी की तीन ने में मृतियों में भी द्विभुजा अम्बिका (आम्रलुम्बि एवं पुत्र) उरकाण है। म्यनुराहो की दोनो ही मृतिया में (मन्दिर : 10 एवं के. 14) समान विवरगा वाली द्विभुज आंम्यका आमृतित है। मन्दिर . 10 के उदाहरण (11 वीं शती) में यश्री की दाहिनी भुजा भग्न है। नवगढ़ की नमी-बारी / की 15 नेमि मृतियों में यक्षी द्विभुज अम्बिका है। अम्बिका की भुजाओं में पूर्वग आम्रलुम्धि एवं बालक स्थित है। मन्दिर 13 और नीनामनियो (१५या शती) में आम्रलुम्बि के स्थान पर क्रमश आम्रफल एक फल प्रदान है। कुछ उदाहरण (मन्दिर 12, 13) में समीप ही दूसरा पुत्र मी पाय है। वाहन सिंह भी केवल कुछ ही उदाहरणा (मन्दिर 12 चारदीवारी ये मन्दिर 15) में उत्कीर्ण है। शीप भाग में आम्रफल के गुच्छक भीमा-कभी ही प्रदर्शित है। तीन उदाहरणा (१०वी-११वी शती) में नाम के माव सामान्य रनणा याली द्विभुज यक्षी (अभय या वरद एवं फल) उत्कीर्ण है। मान्नर . 1 की मूर्ति में दोनों पैर मोड़कर बैठी यक्षी की भुजाओं में पुष्प एवं का प्रदर्शित है। चार नेम मूर्तियां (११वीं-१२ यो शती) में अपारम्पारक यक्षी चतुर्भुजा है। यक्षी की भुजाआ में वरद (या अभय), पद्म, पद्म, एवं फल (या क) प्रदर्शिन है। स्पष्ट है कि देवगा की नाम मूर्तिया में अन्य स्थलों के समान ही द्वमुन अम्बिका उत्कीर्ग है। अम्बिका के साथ केवल आम्रलुम्बि एवं पुत्र के प्रदर्शन में ही नियमितता प्राप्त होती है। यही नहीं, नेमि के साथ अम्बिका के स्थान पर सामान्य लक्षणों वाली अपारम्परिक यक्षी का चित्रण भी दसवीं शती से ही प्रारम्भ हा जाता है। बिहार-बंगाल-उड़ीसा उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र की जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी युगलों के उत्कीर्णन की परम्परा लोकप्रिय नहीं रही है, फिर भी आम्बका की कई स्वतन्त्र मूर्तिया विभिन्न स्थला से प्राम होती है, जिसका कारण निश्चित ही उसका प्राचीन परंपरा की यक्षी होना है। इस क्षेत्र के सभी उदाहरणी में अम्बिका द्विभुजा है, और आम्रलुम्बि एवं पुत्र धारण करती है। इस क्षेत्र की सभी मूर्तिया दिगंबर परंपरा की कृतियां है। लगभग दसयी शती की एक मूति राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली (63. 940) में संग्रहीत है। (चित्र 5) पूर्वी भारत के किसी अज्ञात स्थल से प्राप्त इस पालयुगीन मृति में अम्बिका विभंग में पद्मासन पर खड़ी है। वाहन सिंह आसन के नीचे उत्कीर्ण है। यही की दाहिनी भुजा में आम्रलुम्बि प्रदर्शित है और बायीं में समीप ही अबस्थिन पुत्र (निर्वस्त्र) की गली स्थित है। शीर्ष भाग में आम्रफल के गुच्छक एवं लघु जिन आकृति उत्कीर्ण है। परिकर में उपासक, सेवक वाद्यवादक एवं नृत्यरत आकतियां आमूर्तित है। उड़ीसा के कियोनिझर जिले के आनन्दपुर स्थित पोदसिंगिदि नामक स्थल से
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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