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________________ उत्तर भारत में जैन यक्षी अम्बिका का प्रतिमानिम्पण मर्ति की पीठिका पर एक पंक्ति में आठ स्त्री आकृतियां अष्ट-मातृका उत्कीर्ण ललितमुद्रा में आमीन देवियों में से अधिकतर दोनों हाथ जोड़े हैं, और कुछ की भुजाओं में फल एवं अन्य सामप्रिया स्थित है। अम्पिका के शीर्ष भाग में उत्कीर्ण लघु जिन आकृति के दोनों पाश्वा में बलराम ण्यं कृष्ण-यामदेव की चतुर्भुज त्रिभंग मे बड़ी मूर्तियां उत्कीर्ण है। बलरान एवं कृष्ण का अंकन जिन के नेमिनाथ होनेका संकेत है, जिसकी यनी अम्बिका है। यह मृति इम यान का म्पाट प्रमाण है कि लगभग नवीं शती में अम्बिका नेमि से सम्बद्द की जाचकी थी। नं.न सर्पफणों मे मण्डित बलराम (दाहिने पार्य) की नीन भुजाओं में पात्र (2), मुसल, हल (पताका संयुक्त) प्रदर्शित है, और चौथी भुजा जानु पर आराम कर रही है। कृष्ण की भुजाओं में अभय, गदा, चक्र एवं शश्व स्थित है। यन्मात्य से सुशोभित दोनों देवो के मस्तक खण्डित है। अम्बिका के शीर्ष भाग में आम्रकार के गुच्छक एवं उड्डीयमान मालाधर भी आमूर्तिन है। अलंकृत भामण्डल से युक्त अम्बिका के दाहिने पार्श्व में गजमुख गणेश की द्विभुज मूर्ति उत्कीर्ण है। निना हा में विराजमान गणेश की भुजाआ में अभय एवं मोदकपात्र प्रदर्शिन है। गणेश की शुण्ड मोदक ग्रहण करने की मुद्रा में मोदक पात्र की और मुडी है। बाम पार्थ की ललितमुद्रा में आसीन द्विभुज कुबेर की भुजाओं में फल एवं पर्स प्रदर्शित है। जिन-संयुक्त मूर्तियां: जिन-संयुक्त मूर्तियों में अम्बिका सर्वदा द्विभुजा है। भारत कला भवन (में 212) की नेमि मूर्ति (७वीं-८वीं शती) मे त्रिमंग मे खड़ी द्विभुज अम्बिका की दाहिनी भुजा में पुष्प और बायीं में पुत्र स्थित है। दूसरा पुत्र दक्षिण पाश्र्व में खना है। दक्षिण भुजा में आम्रलुम्बि के स्थान पर पुष्प का प्रदर्शन सातवीं-आठवीं शती के मथुरा से प्राप्त कुछ अन्य उदाहरणों में भी प्राप्त होता है। लायनऊ संग्रहालय की तीन नेमि मूर्तियों (जे-८५८, जे-७९३, 14.0.117 १०वी-११वीं शती) में द्विभुज अम्बिका उत्कीर्ण है। दो उदाहरणों में यक्षी आम्रलुम्बि एवं पुत्र धारण करती है, पर एक में' (14 0117) आम्रलुम्बि के स्थान पर अभय प्रदर्शित है। एक अन्य उदाहरण (जे-७९२) मे सामान्य लक्षणेवाली हिमज यही (अभय एवं सनालपद्म) आमूर्तित है। माला देवी पर्व बजरामठ मन्दिरे। की दसयों आचारदिनकर पष्ठिसंस्कार विधि एवं विगम्बर प्रन्थ विद्यानुशासन में प्रभावी के उल्लेख प्राप्त होते हैं। ये अष्ट-मातृकाएं प्राणी, माहेश्वरी, कौमार्गणी , बागही, इन्द्राणी, चामुण्डा और त्रिपुरा है। एक अन्य मन्थ सारस्थतकल्प (बमाहिसरित) में ब्रह्माणि, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, वैष्णवी, चानु, चण्डिका एवं महालक्ष्मी के नाम प्राप्त होते हैं। एक अन्य प्रन्य में चण्डिका एवं महाली के स्थान पर इन्द्राणी का उल्लेख प्राप्त होता है। देखे-शाह उ.प्रे., काइकनापफी भाष चक्रेश्वरी, द यक्षी औव ऋषभनाथ', जर्नल ओरियन्टल इन्स्टिट्यूट, ख. 20 मार्च 1971, पृ. 286.
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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