________________ मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी एक मूर्ति में अम्बिका की ऊपरी दाहिनी भुजा में पद्म के स्थान पर आम्रलुम्बि प्रदर्शन है और निचली दाहिनी भुजा भग्न है / जैन धर्मशाला के प्रवेशद्वार के ११वी शनी के दो उत्तरांगों पर यक्षी की अर्ध्व वाम भुजा में पुस्तक प्रदर्शित है। केवल मन्दिरः 27 की अकेली मूर्ति में ऊर्ध्व भुजाओं में अंकुश एवं पाश प्रदर्शित हैं। अध्ययन से साण्ट है कि मुख्य आयुधों (आम्रलुम्बि एवं बालक) के सन्दर्भ में कलाकारों ने जहां परम्परा का पालन किया, वहीं ऊर्ध्व भुजाओं में पद्म या पद्म-पुस्तिका का प्रदर्शन खजुराहो की अम्बिका मूर्तिओं की ही विशेषता रही है। उत्तर भारत में चतुर्भुज अम्बिका की सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियां खजुराहो से ही प्राप्त होती हैं। स्वतन्त्र मूर्तियों में शीर्ष भाग मे लघु जिन आकृनियां भी उत्कीर्ण हैं। एक उदाहरण (मन्दिर 27 में लांछन शंख (नेमिनाथ) भी उत्कीर्ण है। ग्यारहवीं शती की चार स्वतन्त्र मूनियों में दाहिने पार्च में दूसरा पुत्र भी उत्कीर्ण है, जिसकी एक भुजा मे फल है, और दूसरी आम्र उम्थि के स्पर्श हेतु ऊपर उठी है। स्वतन्त्र मूर्तियों में अम्बिका सामान्यत दो पाश्र्ववर्ती सेविकाओं से सेव्यमान है, जिसकी एक भुजा में चामर या पद्म प्रदर्शित है, और दूसरी जानु पर स्थित है। साथ ही दोनों पार्थो में ललितमुद्रा में आसीन दो पुरुप या स्त्री आकृतियां भी आमूर्तित हैं, जिनकी भुजाओं में अभय एवं जलपात्र स्थित हैं। परिकर में उपासक, गन्धर्व एवं उड्डीयमान मालाधर आकृतियां भी चित्रित हैं। पुरानात्त्विक संग्रहालय (1608) की एक विशिष्ट अम्बिका मूर्ति (११वीं शती) में जिन मूर्तियों के समान ही पीठिका छोरों पर द्विभुज यक्ष [दाहिनी ओर एवं यनी वायीं ओर की लालतमुद्रा में आमीन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। (चित्र 3) यक्ष की भुजाओं में अभय एवं पर्स और यही की भुजाओ में अभय एवं जलपात्र प्रदर्शित है। शीर्प भाग में पद्म धारण किये कुछ अन्य द्विभुज देवियां भी उत्कीर्ण है। तीन द्विभुज अम्बिका मूर्तियां (१०वीं-११वीं शती) लखनऊ संग्रहालय (जे८५३: जे-७६ 8, 0, 334) में सुरक्षित हैं। शीर्षभाग में आम्रवृक्ष एवं जिन आकृति से युक्त सभी उदाहरणों में ललित मुद्रा में विराजमान यक्षी के समीप ही वाहन सिंह उत्कीर्ण है। सभी में यक्षी आम्रलुम्बि एवं बालक से युक्त है। एक उदाहरण (जे-७९८) में दूसरा पुत्र एवं बाहन सिंह अनुपस्थित है। मूर्ति के परिकर में द्विभुज देवी (अभय एवं कलश) को लघु आकृति उत्कीर्ण है। किसी अज्ञात स्थल से प्राप्त लगभग नवीं शती की एक विशिष्ट मूर्ति मथुरा संग्रहालय (00 डी 7) में सुरक्षित है। (चित्र 4) इस द्विभुज मूर्ति की विशिष्टता परिकर में गणेश, कुबेर, बलराम, कृष्ण-बासुदेव एवं अष्ट मातृकाओं का उत्कीर्णन है, जो अन्य किसी भी ज्ञात अम्बिका मूर्ति में नहीं प्राप्त होता है। ललितमुद्रा में पद्मासन पर विराजमान अम्बिका का वाइन सिंह आसन के नीचे उत्कीर्ण है / यक्षी की कुछ खण्डित दाहिनी भुजा में आनलुम्बि के स्थान पर अभयमुद्रा प्रदर्शिन है, और बायीं से यह गोद में अवस्थित बालक को सहारा दे रही है। दाहिने पार्क में अम्बिका का दूसरा पुत्र मी अवस्थित है। पार्श्ववर्ती चामरधरों से सेव्यमान अम्बिका