SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसर भारत मे जैन यक्षी अम्बिका का प्रतिमानिकपणा नियमितता नहीं प्राप्त होती है। साथ ही उत्तर भारतीय परम्परा के विपरीत यश्री की गोद में एक के स्थान पर दोनों पुत्रों के चित्रण का निर्देश लिया गया है। (ख) मूर्न अंकनो में मूर्त चित्रणो मे सर्वत्र यक्ष-यभियों में अम्बिका ही मर्याधिक लोकप्रिय रही है। प्राचीन परंपरा की यक्षी होने के कारण ही शिल्प में अम्बिका को मर्यप्रथम (छठी शती) निरूपित किया गया। सभी क्षेत्रों मे नवीं शती तक लगभग समस्त जिना के साथ यक्षी रूप में अम्बिका को ही अंकित किया गया. और गुजरान धं राजस्थान के श्वेताम्बर स्थलों पर दसवीं शती के बाद भी सभी जिना के साथ मामान्यन अम्बिका ही उत्कीर्णित है। केवल कुछ उदाहरगों में ऋपभ व पार्श्व के माध पारम्परिक यक्षी निरूपित है। सभी क्षेत्रो की नेमिनाथ मनियों में अम्बिका द्विभुज है. पर स्वतन्त्र अंकनो मे यक्षी का द्विभुज व चतुर्भुज दोनो ही स्वरूपों में चित्रण प्राग्न होता है, यद्यपि दसवी-ग्यारहवी शती तक उसका द्विभुज स्वरूप ही विशेप लोकप्रिय रहा है। 1 सभी क्षेत्रों में अम्बिका का वाहन सिंह है, और उमकी दो भुजाओं में सर्वदा आम्रलुम्बि98(दक्षिण) एवं बालक (वाम) प्रदर्शित है। गोद में अवस्थित बालक को अम्बिका का स्तन स्पर्श करते हुए उत्कीर्ण किया गया है। अम्बिका के शीर्षभाग में लघु जिन आकृति (नेमिनाथ) एवं आम्रफल के लटकते गुच्छका का अंकन भी सर्वत्र लोकप्रिय रहा है। साथ ही दाहिने या वाम पार्य में' दृमरे पुत्र के उत्कीर्णन की परम्परा भी सभी क्षेत्रों में लोकप्रिय रही है। दूसरे पुत्र की भुजा में फल (या आम्रफल) स्थित है और दूसरी ऊपर उठी भुजा माता के आम्रलुम्बि के स्पर्श को उद्यत है। अम्बिका अधिकतर ललितमुद्रा में विराजमान है। राजस्थान-गुजरात: गुजरात में छठी शती में ही जिन मतियो में यक्ष-यक्षी युगल का चित्रण प्रारम्भ हो गया और लाभग दसवीं शती तक सभी जिनों के साथ द्विभुज सर्वानु91 खजुराहो, वेवगढ एवं लखनऊ सग्रहालय की दसवीं-ग्यारहवीं शती की स्थतन्त्र पूनिया में चतुर्भुजा अम्बिका का भी चित्रण प्राप्त होता है। ग्वेताम्बर स्थलो की नेरि मूर्तियों के विपरीत दिगम्बर स्थलों पर वाहन मिह का चित्रण नियमित नहीं रहा हैं। 7 विमलवमही, कुम्भारीया (शान्तिनाथ अवं महावीर मन्दिरी की वेवकुलिका) ब क अन्य रथला पर कभी-कभी आळवि के स्थान पर फल या मुदा भी प्रदर्शिन है। जाह ने दो ऐसी विभुज अम्बिा पूर्तियों का उल्लेख किया है, जिनमें दाहिनी भुजा में आमछबि हैं, पर पार्टी मे बालक के स्थान पर फल प्रवर्जित है। शाह न मुनियों क काल एवं प्राप्ति स्थल का सकेत नहीं दिया है। कभी-कभी अम्बिका की गहिनी भुजा मे बालक स्थित है, और बार्थी मे फल प्रदर्शित है। गाह, आइकनाप्रफी अम्बिका , पृ० 155, चित्र 9 और 10.
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy