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________________ मारुनि नन्दन प्रसाद तिवारी भूति एव अम्बिका ही उत्कीर्णित है। यक्ष-यक्षी युगल से युक्त प्राचीनतम जिन मर्ति (छठी शती। अकोटा से प्राप्त होती है, जिसमें ललितमुद्रा में विराजमान द्विभुज अम्विका की भुजाओं में आम्रलुबि एवं बालक स्थित है।" स्वतन्त्र मूर्तियां आनलुबि एवं फल धारण करने वाली द्विभुज अम्बिका की छठी-सातवो शनी की प्राचीनतम स्वतन्त्र मूर्ति अकोटा से प्राप्त होती है। अम्बिका को सिंह पर आम्ड निर्मापन किया गया है और दक्षिण पार्श्व में उसका दूसरा पुत्र (निर्वस्त्र) भी अवाम्थत है। यद्यपि अम्बिका की वास भुजा में फल प्रदर्शित है, पर गोद में पस उसका पत्र अवस्थित है। यक्षी के शीपंभाग में आम्रफल का गुच्छक अनपस्थित है। हर्षिभाग में नेमिनाथ के स्थान पर सप्तसर्पफणो से मण्डित पार्श्व की ध्यानम्थ मृति उन्कीर्ण है। ग्मरणीय है कि बापभट्टिसूरि कृत चतुर्विशतिका [टी कानो में अम्बिका देवी का नेमि एवं महावीर दोनों ही के साथ अलग-अलग ध्यान किया गया है। उक्त प्रन्थ में अम्बिका का महावीर के साथ स्मरण किया जाना और अकोटा की स्वतन्त्र मूर्ति मे शीर्ष भाग में पार्व का उत्कीर्णन यह प्रमाणित करना है कि आठवीं शती तक ग्रन्थ एवं शिल्प दोनों ही में निश्चित रूप से अम्बिका को नेमि से सम्बद्ध नहीं किया जा सका था। आम्रलुम्यि ण्यं बालक से युक्त द्विभुज अम्बिका की एक मूर्ति (८वीं शती) ओसिया के महावीर मन्दिर क गूढमंडप के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण है। वाहन सिंह भी उपस्थित है। यद्यपि कुछ प्रारंभिक मूर्तियों में अम्बिका के साथ सिंह बाहन का उत्कीर्णन प्राप्त होता है, पर सिंह बाइन एवं शीर्षभाग में आम्रफल के गुच्छकों के नियमित चित्रण नवी शती के बाद ही प्राप्त होते हैं। ढांक की सातवीं-आठवीं शती की क द्विभुज मृति में दोनों ही विशेषताएं अनुपस्थित हैं। यक्षी की दाहिनी भुजा घुटने पर स्थित है ओर बायीं में बालक अवस्थित है। द्विभुजा अम्बिका की आठवीं से दसवीं शती की 6 स्वतंत्र मूर्तियां अकोटा से प्राप्त होती हैं। सभी में सिंहवाहना अम्बिका आम्रलुम्बि एवं बालक से युक्त है। दुसरे पुत्र का नियमित चित्रण नवीं शती की मुर्तियों में ही प्राप्त होता है। दिगम्बर स्थली की मूर्तियों में दूसरे पुत्र को दाहिने पार्श्व में उत्कीर्ण किया गया है, पर श्वेताम्बर मुर्तियों में उसका वाम पाश्र्व में उत्कीर्णन ही विशेप लोकप्रिय रहा है। घटियाला के माताजी के साल (जोधपुर) से प्राप्त एक मूर्ति (861) में सिंहगाडना अबका की दाहिनी भुजा मे आम्रलुम्बि प्रदर्शित है, पर यायीं जानु पर " शाह, उपाकात प्रेमाना, अकोटा ब्रोन्जंज, बबई, 1959, 50 28-29, फलक 11 20 नव, पृ०३०-३१, फलक 14. 21 माकलिया, हसमुख धीरजलाल, 'अलिएस्ट जैन स्कल्चर्स इन काठियावाड, जर्नल रायल __शियाटिक सोसायटी लाउन, जुलाई, 1938 पृ० 527-128 शाम, अकोटा ब्रोन्जेज, चित्र 58 बी, 50 सी, 50 ए।
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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