________________ उत्तर भारत में जैन यक्षी अम्बिका का प्रतिमानिरूपण तांत्रिक ग्रन्थ में अम्बिका का भयावह स्वरूप . एक तांत्रिक ग्रन्थ अम्बिका-ताटक में अम्बिका के भयकर स्वरूप का स्मरण किया गया है और उसे शिवा, शंकरा, स्तम्भिनी, मोहिनी, शोषणी, भीमनादा, चण्डिका, चण्डरूपा, अघोरा आदि नामों से सम्बोधित किया गया है। अपने प्रलयंकारी रूप में उसे समस्त सृष्टि की संहारक भी बताया गया है। प्रलयंकारी स्वरूप में उसकी भुजाओं मे धनुप, बाण, दण्ड, खड्ग, चक्र, एवं पदूम आदि के प्रदर्शन का निर्देश है। सिंहवाहिनी देवी की भुजा में आम्र (आम्रहस्ता) का भी उल्लेख्य है।11 शाह ने विमलवसही की देवकुलिका 35 के समक्ष के पितान पर उत्कीर्ण विशतिभुज देवी (भाव 25) की सम्भावित पहचान अम्बिका के इमी भयंकर स्वरूप से की है। ललितमुद्रा में ऊचे आसन पर विराजमान अम्विका की 17 भुजाएं खण्डित हैं। आसन के नीचे वाहन सिंह उत्कीर्ण है / अम्विका की अवशिष्ट भजाओं में खझा, शक्ति, सर्प, गदा, खेटक, परशु, कमण्डलु, पद्म, अभय एवं वरद प्रदर्शित है। यक्षी के दोनों पाश्चों में त्रिभैग में दो अष्टभुज पुरुप आकृतिया अवस्थित हैं। दाहिने पार्श्व की आकृति वन (या वन-घण्ट) एवं अकुश से युक्त है, जब कि बायीं और की आकृति पाश एवं मुद्राएं धारण करती है। शाह ने इन आकृतियों की पहचान अम्बिका के दो पुत्रों (सिद्ध एवं बुद्ध) से की है। उन्होंने सम्भावना व्यक्त की है कि अम्बिका का अपना स्वतन्त्र परिवार रहा है, जो सम्प्रति प्रन्थों में अनुपलब्ध है। श्वेताम्बर परंपरा में अम्बिका की उत्पत्ति की विस्तृत कथा जिनप्रभसूरिकृत 'अम्बिका-देवी-कल्प' (1400) में सुरक्षित है। प्रन्थ में अम्बिका (या अंयिणी) के दोनों पुत्रों के नाम सिद्ध एवं बुद्ध बताये गये हैं। अम्बिका की उत्पत्ति से से सम्बन्धित दिगंबर कथा 'पुण्याश्रव कथा' के 'यक्षी कथा' में प्राप्त होती हैं। दिगंबर परम्परा में अग्निला (अम्बिका के पूर्व जन्म का नाम) के दोनों पुत्रों के नाम शुभंकर और प्रभंकर बताये गये हैं। श्वेताम्बर कथा में उल्लेख है कि पूर्व जन्म में अम्बिका सोम ब्राहमण की भाय, थी, जिसे किसी अपराध पर उसके पति ने गृहत्याग के लिए विवश किया। फलत अम्बिका को अपने दोनों पुत्रों के साथ गृहत्याग करना पड़ा। भूख प्यास से व्याकुल अम्बिका एवं उसके पुत्रों के सहायतार्थ मार्ग का सूखा आम्रवृक्ष आम्रफलों से लद गया और सूखा कुआं जल से भर गया। अम्बिका ने फल एवं जल ग्रहण कर उसी वृक्ष के नीचे विश्राम किया। कुछ समय पश्चात् सोम पश्चात्ताप करता हुआ अम्बिका को ढूढने निकला। सोम को आते देखकर भयवश अम्बिका ने अपने 11 तदव, पृ० 161 12 तदव, पृ० 162 18 तदेव, पृ. 162 1+ अन्ध की हम्नलिखित प्रतिलिपि सम्प्रति जिन-कांची के पुजारी क अधिकार में है।