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________________ गौतम पटेल मनुष्य निर्मम होकर ससारसागर को पार करता है इस विचार को कालिदास हृद्यसाधर्म्यसहित उपमालकार से आत्मवत करते हैं।.. मारुति गागर तीर्ण मसारमिव निर्मम. 1153 जब ससारसागर पार करने की बात आती है तब गीता 'निर्मानमाहा' होने का 'मामका' वृत्ति त्यागने का एक या दूसरी तरह खीकार करती है। रघुवंश के जन्मभीरु पुत्रनामक राजाने जैमिनि को स्वदेहार्पित करके भी योगमार्ग द्वारा ऐसी तैयारी कर ली कि नूतन जन्म प्राप्त न हो 113 ___ तत्त्वज्ञान से भी अतिथि (राजा) अज्ञान रूपी अंधकार का विनाश करता है।186 रघु ने ज्ञानमय अग्नि से कों को भस्मसात किया। 80 गंगा-जमना के सगम में देहन्याग करनेवालो को तत्त्वज्ञान के बिना भी शरीरबधन नहीं होता।15 कालिदास मृचित करते हैं कि अन्यत्र ने ज्ञानात् न मुक्ति का सिद्धांत प्रतिपादित है। गीता और कालिलाम में अति साम्य है कि अभ्यास से मन निग्रह करके योगी ईश्वर को खोजते है। मुक्तिमार्ग में भी कालिदास और गीताकथनों मे साम्य हैं। गीतानुसार विधिहित, मंत्रहीन, धन के दान रहेत, और श्रद्धा रहित यज्ञ तामस है।10 कालिदास भी श्रद्धा, वित्त और विधि को साथ में आवश्यक मानते हैं।140 गीता का 'या निशा सर्वभूनानां में उल्लिग्विन रात्रि और दिन का विरोधाभासी विचार भी कालिदास ने अग्निवर्ण के वर्गन में आरेखिन किया है। भोगावेलास में वह राजा रात्रि में जागृत रहना और दिन में मोजाना इम.लेए 'रात्रिकाल' की उपमा उन्होने प्राप्त की। ____आरुरोह कुमुदाकरोपमा रात्रिजागरपरो निशाशय 149 पुराणस्य कवेस्तस्य145 जैसे कविकृत प्रयोग गीता के 'कवि पुराणम्' के साथ साम्य सूचित करते हैं। गीता में विष्णुपद के लिए 'यद् गत्वा न निवर्तन्ते कथन के भाव कालिदासने भगवान शिव के पदके लिए प्रयुक्त किये हैं। 'अनावृतिमय पदम्'। और कालिदास यह भी कहते हैं कि विष्णु का चिन्तन 'अभूय सन्निवृत्तये' है। कालिदास की प्रणयभावना के आदर्श में गीता की विचारझलक प्राप्त होती हैं। विवाहया के काव्यरूप कुमारसंभवम् का उदाहरण देखिये। पार्वती में देवी संपत्ति के अनेक गुग है-धुरेच्छा, मनस्विता, आहार्यनिश्चया, बहुक्षमा, मानिनी इत्यादि / निर्विषयार्थकाम होकर वह पंचाग्नि तप करती है। तब दैवी गुण दृष्टिगोचर होते है। शिव के साथ स्वधर्मचर्यार्थ पाणिग्रहण किया जाता है।141 धर्म से शिव पार्वती की और पदार्पण करते है इसलिए पूर्वापराध से भयभीत कामकामना भी उच्छ्वसित होता है।149 यह गीता का धर्माविरुद्ध काम का सिद्धांत कालिदास स्वीकार करते हैं। काम ईश्वर का ही स्वरूप है। देवों की यह योजना पूर्णत. निष्फल होती है कि कामदेव की सहायता से सौन्दर्य युक्त पार्यती शिव प्राप्त करे। शिव-कल्याण काम से प्राप्त नहीं होता क्योंकि काम, क्रोध और लोभ नरकद्वार हैं1180 काम रूपी नरक द्वार से सत्य-शिव
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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