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गौतम पटल
से अनुसरण करे तो भी मृत्यु से परे हो जाता हैं ।10+ विष्णु के सिवाय अन्यथा सेवन करने वाला भी अविधिपूर्वक ईश्वर का ही पूजन करता है ।108 विष्णु स्मरणमात्र से मनुष्य को पवित्र करते हैं-केवल स्मरणेनैव पुनासि पुरुषं यत. 1100 गीता में भी ईश्वररमरण की महिमा अस्खलित रूप से हैं ।107 देखो
अनन्यचेता सततं यो मां स्मरति नित्यश ।
तस्याहं सुलभ पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन ॥ 01 - गीता में एक ही स्थान पर ईश्वरप्राप्ति के लिए 'मुलभ' शब्द स्मरण के रूप में प्रयुक्त हुआ है जिसका प्रतिघोप विद्वज्जन कालिदासप्रयुक्त ‘केवलम्' शब्द में सुनते हैं।
कुमारसभव की ब्रह्मा की स्तुति में 108 मी ब्रह्मा को जयत के परम तत्त्व को मान कर जिन गुणों और लक्षणां का कालिदास वर्णन करते हैं, वे गीता में भी हैं। सबका विस्तृत वर्णन असंभव है परतु कतिपय ध्यानयोग्य निर्देश देखिये। ब्रह्मा को मृष्टि के आरंभ मे अकेला, सृष्टि सर्जन समय पर त्रिगुणात्मक और अंत मे भेद प्राप्त करने वाला वर्णन किया है। जगत् के प्रलय, स्थिति और सर्ग के कारणरूप एकमात्र ब्रह्मा ही है। उनकी रात्रि और दिन सर्व भूतों के प्रलय और उदय हैं ।109 गीता के १३ वे अध्याय की शैली में ब्रह्मा मे विरोधाभासी गुणों का एकपदसहवास कालिदास दिखलाते हैं । पुरुष-प्रकृति स्वरूप
पुरुष और प्रकृति के स्वरूप और गुणों से कालिदास सुपरिचित हैं। पुरुष उदासीन और प्रकृति त्रिगुणात्मिका है। पुरुष के लिए वह प्रवृत्निशील है। ऐसा ब्रह्मा की स्तुति में निर्दिष्ट है।
त्यामामनन्ति प्रकृति पुरुषार्थप्रवर्तिनीम ।
तदर्शिनमुदासीनं त्वामेव पुरुषं विदुः ॥110 एक आश्चर्ययुक्त आह्लादक परिस्थिति के प्रति अंगुलिनिर्देश करने का मन होता है कि रघुवंश में विष्णु की स्तुति के प्रसंग में गीता से अभिभूत कालिदास गीता की ही उपमा देते हैं। ___ जाने वो रक्षसाक्रान्तावनुभावपराक्रमौ ।
अङ्गिनां तमसेवोभौ गुणौ प्रथममध्यमौ 11111 विष्णु देवताओं को कहते हैं कि मनुष्य के प्रथम (सत्त्व) और मध्यम (रजस) गुण तमोगुण द्वारा दब जाते हैं, इस प्रकार आपके तेज और पराक्रम राक्षस द्वारा दबा दिये गये हैं। गीता मी स्पष्ट कहती है।
रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत । रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सस्य रजस्तथा ॥119