SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता और कालिदास ११) शार्दलचर्मव्यवधानवत्याम्81 और चैलाजिनकुशोत्तरम् ,89 (२) संयमिनम् 85 और थतचिचेन्द्रियक्रिय * मन संयम्य नियतमानस आदि, (३) पर्यबन्धम्धिरपूर्वकायम् । और समकायशिरोग्रीवम् धारयन्नचलं स्थिरः180 (४) नेत्रैरविस्पन्दितपक्ष्ममालेलक्ष्यीकृतघ्राणमघामयूखै 87 और संप्रेक्ष्यं नासिकान खं दिशश्चानवलोकयन मनोनवद्वार xलोक का साम्य तो आगे देखा। सहृदय को आनंद देनेवाला साम्य तो ध्यानरथ शिववर्णन में दी गई उपमा में है।. उदा० अन्तश्चराणां मरुतां निरोधान्नियातनिष्कम्पमिव प्रदीपम् । और यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता । योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मन ॥७ संयमी योगी के लिए 'निवातस्थ दीप' की उपमा योग्य है ऐसा गीता कथन मानों कालिदासने सरपे चढ़ाकर उपमा के रूप में योगीराज शिव के लिए प्रयुक्त किया है। कालिदास रघुवंश की विष्णुस्तुति में मी गीता के अनेक सिद्धांतो-लोका और शब्दसमूहों का प्रयोग करते हैं। विष्णु को 'आदिपुरुष'91 और 'पुराणम् ११३ कहा है। गीता भी त्वमादिश्व पुरुषः पुराण १४ कहती है। विष्णु विश्व के कर्ता, हर्वा और भर्ता है जिसका साम्य गीता में भी है। और यह हृदयस्थ हैं। गीता मे भी 'ईश्वर. सर्वभूतानां हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति कहा हैं। विष्णु सप्तसामोपगीत°० हैं। गीनानुसार वह सर्व वेदों द्वारा वेध हैं। वैदेश्व सर्वैरहमेव वेद्य ।" योगी अभ्यास द्वारा मन को वश में कर के मुक्ति के लिए ज्योतिर्मय विष्णु का चिंतन करते हैं। उदा०.. अभ्यासनिगृहीतेन मनसा हृदयाश्रयम् । ज्योतिर्मय विचिन्वन्ति योगिनस्त्वां विमुक्तये ॥१॥ गीता में भी इस श्लोक का भावार्थ विविध स्थानों पर व्यक्त होता है। (१) अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।। (२) ईश्वर' सर्वभूताना हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति ।100 (३) तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यम्101 (कालिदास में तेज का पर्याय ज्योति शब्द है।) (४) यतन्तो योगिनश्चैन पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् ।10 कालिदास विष्णुस्तुति में कहते हैं कि .. बहुधाप्यागमैमिन्ना पन्थान सिद्धिहेतव । त्वय्येव निपतन्त्योघा जाहनधीया इवार्णवे ॥108 ईश्वर के गुणों का साम्य : गीता के कथनानुसार मोक्षमार्ग से अज्ञात (मानव) दूसरे के पास से श्रवणमात्र
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy