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________________ गीता, और कालिदास मम वानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ । सर्वश ॥ उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्या कर्म चेवहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमा प्रजाः || शब्द और सिद्धांत में कितना आश्चर्ययुक्त साम्य । और कालिदास की सुषमापूर्ण शैली का स्पर्श भी। अंतिम दो श्लोकों के समग्र सिद्धांत को उन्होंने श्लोकार्ध में रखा । मिताक्षरी-सरस कथनशैली कालिदास की कला की आत्मा है। दुष्यंत के चरित्र में स्वसुखनिरभिलाष खिद्यस लोकहेता +8 की उक्ति गीता की लोकसंग्रह भावना का सूचन करती है। रघु के चरित्र में स्थिरधीरा और वसिष्ठ के संदेश में स्थिरधी शब्दप्रयोग कालिदास गीता के स्थितप्रज्ञ से विदित है, यह सिद्ध करता है। विभूतियोग गीता के विभूतियोग विचार से भी कालिदास सुपरिचित हैं। कवि कहते हैं कि रघु की यशविभूतियां हँसो के हार में, तारकगण में और कुमुदयुक्त जल में प्रसारित हो गई। कवि मनु के लिए प्रणव छन्दसामिव कहते हैं। तब मन में भ्रान्ति होती है कि क्या यह पद विभूतियोग से तो नहीं लिया गया ? गीताकार के अनुसार गीता में भी ईश्वर प्रणव. सर्ववेदेषु है-ऐसा कहते है। आत्मा की अमरता और देह की नश्वरता . आत्मा की अमरता और देह की नश्वरता का गान गीता पूर्णरूप से गाती है। कालिदास भी मृत्यु को प्रकृति और जीवन को अकस्मात मानते हैं।०० देह और देही का संयोग और वियोग सुना है। कालिदास का यह स्वाभाविक कथन सुनते ही गीता का 'जातस्य हि धुवो मृत्युः' याद आ जाता है। मनुष्य पूर्वजन्म के संस्कारानुसार बुद्धिसंयोग प्राप्त करता है। गीता की यह बात पार्वती में चरितार्थ होती है क्यों कि उनको 'प्राक्तनजन्मविद्या' मिलती है। सुदर्शन भी' पूर्वजन्मान्तरदृष्टप्रज्ञः है। और कालिदास तो 'भावस्थिराणि जननान्तरसोहदानि' का उपासक है।10 'मनो हि जन्मान्तरसंगतिगतम् । ऐसा कालिदास स्पष्टतया कहते है। गीता निर्दिष्ट लुप्तपिण्डोदक क्रिया में अर्जुन की द्विधा कालिदास के दिलीप और दुष्यंत दोनों अनुभव करते हैं। दव प्राधान्य ___ अनेक विद्वान स्वीकृत करते हैं कि गीता के 'वैवं चैवान्न पञ्चमम् १०० में देव प्रोधान्य प्रतिपादित है। कालिदास की देवप्राबल्य की भावना किसी भी सहृदय को उनकी कृतिओं में यत्र तत्र सर्वत्र ब्रह्म की तरह व्याप्त दिखाई देती है। उनके दैवप्राबल्य के निर्देशों को संग्रहित करें तो भी एक गवेषणपत्र तैयार हो जाय 101 सब के हृदय में विराजित ईश्वर मानो यंत्रारूढ है इस तरह सर्व जीवों को अपनी माया से घुमाता है।०३। ___ गीता का यह कथन कालिदास काव्यमयरूप से प्रस्तुत करते हैं-. 'विषमप्यमृत क्वचित् भवेदमृतं वा विषमीश्वरेच्छया।
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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