SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । • गोतम पटेल सहजं कर्म कौन्तेय ! सदोषमपि न त्यजेत् । सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः ।। इस विचार का प्रतिघोष कालिदास में उदाहरण सहित सुस्पष्ट हुआ है।.... "सहज किल यद्विनिन्दितं न खलु तत्कर्म विवर्जनीयम् । पशुना रणकर्मदारुणोऽनुकम्पामृदुरेव श्रोत्रियः ।। 138 - कितना साम्य है। इन दोनों अवतरणों में 'सहज' और 'कर्म' शब्द एक ही है। 'न त्यजेत्' के पर्याय रूप से कालिदास 'न विवर्जनीयम्' प्रयुक्त करते हैं। 'सदोषम्' के बदले 'विनिन्दितम्' कहते हैं। दूसरी पंक्ति में दी गई यश की कल्पना भी कालिदास को गीता के धूम और अग्नि की उपमा से सूझी होगी। गीता भी यश को 'न त्यजेतू-कार्यमेव' ही कहती है। क्योंकि वह मनुष्य को पवित्रता देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां 'किल' अर्थात् कहते हैं ऐसा प्रयोग देकर कालिदास गीता का अवतरण देना चाहते है। कालिदास गीता के सुप्रसिद्ध निष्काम कर्म के सिद्धांत से अनजान नहीं। शिव 'केनापि कामेन' तप करते हैं तो सुदर्शन 'फलनिस्पृह' बन के तप करते हैं। अवतारवाद गीता का सुप्रसिद्ध सिद्धांत अवतारवाद भी कालिदास के सर्जन में अनेक स्थलों पर उल्लेखित हुआ है। विष्णु के वराह, नृसिंह, वामन, राम और गोपवेशधारी कृष्ण के अवतारे। का सीधा निर्देश है।३० रघु और अज को लेखक यति और नृपवेशधारी धर्म और योग का अंश मानते हैं। राजा दशरथ पृथ्वी पर तीन रानियों से युक्त होने के कारण तीन प्रकार की शक्तियों से युक्त इन्द्र के अवतार के समान शोभित थे।58 कालिदास अवतार शब्द का भी स्पष्ट प्रयोग करते हैं। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को धर्म-अर्थ-काम और, मोक्ष के देहधारी अवतार माने हैं। धर्मार्थकाममोक्षाणामवतार इवानभाक् ।39 गीता निर्दिष्ट अवतार के प्रयोजन से कालिदास अनजान तो नहीं हैं। धर्मसरक्षगायाप्रवृचिर्भुवि पार्षिण ।40 विष्णु की पृथ्वी पर आनेकी प्रवृत्ति धर्मरक्षणार्थ है। विष्णु 'अज'-अजन्मा है तो भी जन्म धारण करते हैं। यह सत्य कालेदास और गीता में समानतया दिखाई पड़ता है। ___ अनस्य गृहगनो जन्म 1 ऐसा कालिदास और 'अजोऽपि सन्..संभवाम्यात्मनायया' " ऐसा गीताकार कहता है। ईश्वर के जन्म ओर कर्म के प्रयोजन लोकानुग्रह है। कालिदास कहते हैं कि ईश्वर को कुछ भी प्राप्त करना बाकी नहीं। उदा० . अनवाप्तमवाप्तव्यं न ते किंचन विद्यते । लोकानुग्रह एवैको हेतुस्ते जन्मकर्मणोः ।।। इसके साथ गीता का श्लोक भी देखिये न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन । नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ।। यदि हयहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः ।
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy