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समराइचकहा में... वस्त्रों के धारण करने की कला के साथ-साथ आभूपों का प्रयोग भी भारतीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ प्रारम्भ हुआ। समराइच्चकहा में निम्नलिखिन आभूषणां का उल्लेख है। ___ कुण्डल-इसका उल्लेख समराइच्चकहा में कई स्थानों पर किया गया है। यह कान में पहना जाने वाला एक अलंकार था जिसे स्त्री-पुरूप दोनों धारण करते थे। कुण्डल की आकृति गोल-गोल छल्ले के समान होती थी। अमरकोष में इसे कान को लपेट कर पहना जाने वाला आभूषण बताया गया है। डा वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार इसमें गोल घाली तथा सोने की इकहरी लड़ी लगी होती थी, अजन्ता की चित्रकला में इस तरह के कुण्डलों को चित्रित किया गया है। हम्मीर महाकाव्य में भी कुण्डल का उल्लेख है जिसका प्रयोग पुरुप किया करते थे। यशस्तिलक में आया है कि सम्राट यशोधर ने चन्द्रकान्त के बने कुण्डल धारण किये थे। इसी ग्रन्थ में आगे उल्लिखित है कि मुनिकुमारयुगल विना आभूपणा के ही अपने कपोलों की कान्ति से ही ऐसे लगते थे मानो कानों में कुण्डल धारण किये हो । आदिपुराण में मणि कुण्डल,80 रन कुण्डल,81 कुण्डली, तथा मकराकृति कुण्डल83 आदि विभिन्न प्रकार के कुण्डलों का उल्लेग्य है जिससे स्पष्ट होता है कि उस समय विभिन्न प्रकार के कुण्डलों का प्रयोग किया जाता था। यहा कुण्डली का तात्पर्य छोटे आकृति के कुण्डल से लगाया जा सकता है।
___ कटक-समराइच्चकहा में कटक का उल्लेख कई बार किया गया है। इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनों करते थे। यह हाथ में पहना जाने वाला आभूपण था। कटक कदम्ब (पैदल सिपाही) की व्याख्या में वासुदेवशरण अग्रवाल ने बताया है कि सम्भवत कटक (कड़ा) पहनने के कारण ही इन्हें कटक कदम्ब कहा जाता था। हर्षचरित में उल्लेख है कि 'कुमार के कटक मणिदेव की केयूर मणि से आलिंगन में उस प्रकार रगड खायेगी जैसे मन्दराचल के कटक विष्णु के केयूर से टकराये थे। इन उद्धरणा से स्पष्ट होता है कि कटक और केयूर दोनो का प्रयोग स्त्री-पुरुष करते थे। आदिपुराण में एक स्थान पर दिव्य कटक' का उल्लेख है जिसे रलजडित कडा कहा जा सकता है।
केयूर88-इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनों करते थे। अमरकोष में अंगद और केयूर को पर्याय बताया गया है। भर्तृहरि ने केयूर का उल्लेख पुरुषों के अलंकार के रूप में किया है 190 किन्तु इसके विपरीत यशस्तिलक में आया है कि विरह की स्थिति में स्त्रियां बाहु का केयूर पैरो में तथा पैरो का नूपुर बाहु में पहन लेती है।* स्पष्टत इसका प्रयोग स्त्रियां ही नहीं, वरन पुरुष भी करते थे।
मुद्रिका-समराइचकहा में इसे अंगुलियों में पहना जाने वाला अलंकार बताया गया हैं। 1 मुद्रिका का उल्लेख भगवती सूत्र में भी आया है। यशस्तिलक में अंगुठी के लिए उर्मिका तथा अंगुलीयक + शब्द आये हैं। हर्षचरित में भी