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________________ तस्वार्थसूत्र-ऐतिहासिक मूल्यांकन होत. आ मिद्धान्तनी पोतानी ज वात करीए तो, ते सिद्धान्त अत्यन्त प्रबळपणे ऊठेली सैद्धान्तिक मागने सतोषवा घडवामा आव्यो हतो, कारण के हवे शक्य तेटला बधा ज लाक्षणिक जैन विचारोनी-तत्वोनी-यादी बनाववाना प्रश्न न हतो परंतु जैन सैद्धान्तिक मतोनु समग्र तन्त्र जेटला तत्त्वोथी आवरित थई जतुं होय तेटला ज तत्वोनी--बिनजरूरी तत्वोने स्थान आप्या विना-यादी घडवानो प्रश्न हतो. परिणामे छल्ले अस्तित्वमा आवेली १२ तत्त्वोनी यादीनी बाबतमां वधाराना बिनजरूरी तत्त्वोने दूर करवानी सावधानीपूर्वकनी क्रिया थई. ज्यां सुधी प्रमेयमीमांसाविषयक मंतव्योने लागेवळगे छे त्यां सुधी जीव भने अजीव बे तत्त्वोए देखीती रीते ज पोतानी जातनी पूरेपूरी संभाळ लीधो-पोतानो जातने पूरेपूरी टकावी राखी, परंतु जेमने आचारमीमांसाविषयक मंतव्यो साथे सबंध हतो ते शेष दस तत्वोमां निरर्थकताओ हती. जन्म-मरणचक्रना बंधननो अर्थ धरावतुं बंधतत्व भने आ चक्रमांथी छुटकारानो अर्थ धरावतुं मोक्षतत्त्व मा बे तत्त्वो उपयोगी हतां ए तो सहेजे समनी काय छे, परंतु वधारामा जे जरूर हती ते बंधना हेतुभूत एक तत्वनी अन मोक्षना हेतुभूत बीजा तत्त्वनी. परंतु केटलीक अप्रस्तुत बाह्य विचारणाओए बधतत्त्व अने मोक्षतत्त्व उपरांत बे नहि पण पांच तत्त्वो स्वीकारवार्नु जरूरी बनाव्यु. ते आ प्रमाणे. सारा एवा प्राचीन काळथी भासवने ससारचक्रमा जकडी रास्ववाने जवाबदार सामान्य माणसना आचार तरीके समजवामा भावतो, अने मा संसारचक्रमांथी मुक्तिने माटे जवाबदार आदर्श साधुना वैनायक माचार तरीके संवस्ने समजवामां आवतो, परंतु पछी तरत ज पुण्य मने पाप ए बे तत्वो उमेरवामां आव्यां--पुण्य एटले शुभजन्मना हेतुभूत सुकृत्यो अने पाप एटले अशुभ जन्मना हेतुभूत दुष्कृत्यो. हवे एवं लाग्यु के मानव-संवर ए बे तत्वोनो एक उपयोग छे, ज्यारे पुण्य अने पाप ए बे तत्त्वोनो बीजो उपयोग छे, अने तेथी चारेय तत्त्वोने बंध अने मोक्ष ए बे मूळभूत तत्त्वो साथे रहेवा देवामा माव्या. पांचमा तत्त्व निर्जराने बीजा खास कारणसर रहेवा देवामां आव्यु मूळे तो वेदन अने निर्जरा बे तत्त्वोनो घनिष्ट अविनाभाव संबंध छे, अने जैन परम्परानी लाक्षणिकता तरीके तेमना उपर खास भार मूकवामां आवतो हतो. आम जैनो सारां-नरसां कृत्योने परिणामे आत्माने लागतुं भने तेमनां फळना मोग पछी आत्माथी छुटुं पडी जतुं 'कर्म' नामर्नु एक जात, पौद्गलिक अर्थात् भौतिक द्रव्य मानता थया हता. पूर्वे करेलां कृत्यनां फळने भोगववानो प्रक्रिया वेदन कहेवाती, आत्माथी 'कर्म'द्रव्यना दूर
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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