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________________ 192 कृष्णकुमार दीक्षित प्रारंभथी ज जैन ग्रन्थकारो साधुनो केवो आचार मोक्षदायक छे तेनी चर्चा करता हता, अने वखत आव्ये पाछळथो तेमणे धर्मनिष्ठ श्रावकनो केवो भाचार स्वर्गदायक छे तेनो चर्चा शरू करी कारण के साधु थया विना मोक्ष पामवानो कोई प्रश्न ज न हतो आ उत्तरकालोन भूमिकाए जैन मागमानी सत्यतामा श्रद्धा सम्यकचारित्रमी अनिवार्य पूर्वशरत छे ए वात उपर तेम ज जैन भागमोमां श्रद्धा जागे ते माटे तेमनु श्रवण करवू जोईए ए बात उपर भार मूकावानुं शरू थयु. मा अंतिम मतव्यनी लोकभोग्य विचारणा उत्तराध्ययनना बोजा अध्ययनमा छे; त्यां ग्रंथकार खेद व्यक्त करे छे के मनुष्यजन्म दुर्लभ छे, मनुष्य जन्मथो वधु दुर्लभ जैन आगमोनुं श्रवण छे, मा श्रवणथी वधु दुर्लभ जैन आगमोमां श्रद्धा छे अने आ श्रद्धाथीय वधु दुर्लभ तो जैन आगमोना उपदेश प्रमाणेनो आचार छ, भा ज मंतव्यनो कईक शास्त्रीय विचारणा दशाश्रुतस्कंधना दसमा अध्ययनमा छे; त्यां आचार प्रमाणे मनुष्योनी कक्षाओ पाडवामां आवो छ कारण के त्यां का छे के केटलाक तो जैन आगमोन श्रवण पण करता नथी, केटलाक तेमनुं श्रवण करे छे तो तेमनामां श्रद्धा घरावता नथी, केटलाक तेमनामां श्रद्धा धरावे छे तो तेमना उपदेश प्रमाणे आचरण करता नथी, केटलाक तेमनामां श्रद्धा धरावे छे अन साये साये सेमना उपदेश प्रमाणे आचरण पण करे छे. ज्यारे उमास्वाति जणावे छे के व्यक्तिमा सम्यकदर्शन निसर्गथी या अधिगमने परिणामे जन्मे छे (१३) त्यारे तेभो पोते पण आ ज मंतव्यने निर्देशे छे-निसर्गनो प्रथम विकल्प विरल ले ज्यारे बीजो विकल्प जैन शास्त्रो भणवाने परिणाम जैन शास्त्रोमां जेमने श्रद्धा जागे छे तेमने अनुलक्षीने छे; तेथी सम्यकदर्शन, सम्यकूज्ञान अने सम्यक्चारित्र त्रण साये मळीने मोक्षमार्ग बने छ एम कहेतो वखते जैनशास्त्रोना श्रवणमात्रथो कईक जुदु' 'सम्यक्ज्ञान' द्वारा तेमने अभिप्रेत होवु जोईए. सम्यक्दर्शननी साथे साथे आ रीते सम्यक्ज्ञानने स्वीकारवानी जैन परंपरा न हती एटलं ज नहि पण जैन सैद्धान्तिको द्वारा स्वीकृत एक अन्य मन्तव्य प्रमाणे सम्यक्रदर्शनथो स्वतन्त्र नवी ज प्राप्ति तरीके सम्यकुज्ञानने निरूप, जैनने माटे अशक्य हाँ,, कारण के आ सैद्धान्तिको मानवा लाग्या हता के ज्यां सुधी जैनशास्त्रोमां श्रद्धा न जागे त्यां सुधी जे कई ज्ञान व्यक्तिमा होय छे ते मिथ्याज्ञान छे परंतु तेपनामां श्रद्धा जागतां ते ज ज्ञान आपोआप सम्यज्ञान बनी जाय छे; उमास्वातिए पोते मा मन्तव्यतुं स्पष्टीकरण कयु छे (१, ३२-३३). तेथी, सम्यक्दर्शनथी अतिरिक्त नवी प्राप्ति जाणे के सम्यक्ज्ञान होय एवं ज्यारे
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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