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र. म. शाह
प्रस्तुत संपादन खेतग्वसही पाटक जैन ज्ञान भंडार, पाटण (उ. गुजरात) में प्राप्त नाडपत्रीय प्रति परसे किया गया है । इसका नंबर १२ (नया नंबरहै और इसमें ३६४५ मे. मी. कद के २६४ पत्रों में कुल मिलाकर ५४ कृतियो का संग्रह है। जिसमें (१) 'अनाथि संधि' पत्र १७३ ब से १७६ ब, तथा (२) 'जीवानुशास्ति संधि' पत्र १७६ ब से १७९अ में लिखित है।
इसी प्रति में जिनप्रभसूरि की लगभग ३० लघु कृतियों का संग्रह है, जिनमें उपरि निर्दिष्ट सभी कृतियां आ जाती हैं।
[१] अनाथि-संधि
(कडवक-२) जसज्जवि माहप्पा, परमप्पा पाणिणो लहुं हुंति । तं तिथं मुपसत्थं, जयइ जए वीर-जिणपहुणो ॥१॥
विसहि विनडिट, कमाय-जगडिउ, हा अणाहु तिहुयणु भमइ । जो अप्पं जाणइ, मम-मुहु माणइ, अप्पारामि सु अभिरमइ ॥२॥
रायगिहि नयरि सेणीउ गाउ, गुरुभत्ति-निवेसिय-वीयराउ । सो अन्न-दिवसि उज्जाणि पत्त, मुणि पिक्खिवि पणमइ नमिय-गत्तु ॥३॥ वपु रूबु वन्नु लावन्नपुन्नु, किं मुणि नवजुव्वणि सरसि रन्नु । नरराय अहं बहुविह अणाहु, मुणि भोग माणि हउं तुज्झ नाहु ॥४॥ तं अप्पणो वि नरवइ अणाहु, अन्नेसि होसि किम भणइ साहु । किं मई न हु जाणइ नरवरिंदु, जे एरिसु पभणइ मुणिवरिंदु ॥५॥ गय-हम-सह-जोहसणाहु रज्जु, संपज्जइ मण-बंछीउ कज्जु । मुधि भणइ पुण वि जगु सउ अणाहु, असहाइउ भमडइ भवु अगाहु ॥६॥ कोसंबीनयरोइ जं जि वित्तु, तं सुणि मगहाहिव एग-चित्तु । तहिं अस्थि पिया मह सुविहारु, सुकलत्त-पुत्त-सुहिसयण-सारु ॥७॥ पढमे क्यम्मि मह रोग रोग, उम्पन्ना विज्जहं मुक्क जोग । पिय-माइ-भाय-भइणी य सयग, विलवइ विविहाई दीण-वयण ॥८॥ मह रोग-पीड इक्कु वि न लेइ, पुण पासि बट्ठउ रुणझुणेइ । जो इक्कु वि रोगु निराकरेइ, मह जणउ तस्सु धणु भूरि देइ ॥९॥ न हु केणइ फेडिय पीड मज्झ, इय वेअण सव्वहं हुअ असज्झ । सुकलत्त-पुत्त-परियण-मुमित्त, न हु मंत-तंत तसु विढत्त चित्त ॥१०॥