SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमगच्छीय श्रीजिनप्रभसूरिविरचित अपभ्रंश-संधिद्वय र. म. शाह प्रास्ताविक उत्तरकालीन अपभ्रंश साहित्य में संधि एक प्रचलित काव्य--प्रकार था । विक्रमकी १३ वीं शताब्दी से लेकर १५ वीं शताब्दी तक रचे गये ऐसे करीब पचीस काव्य अब तक उपलब्ध हुए हैं। प्राप्त संधि-काव्यो में प्राचीनतम संधिकाव्य, आचार्य रत्नप्रभसूरिरचित 'दोघट्टी' वृत्ति, जो धर्मदासगणिविरचित उपदेशमाला की विशिष्ट टीका है और जिसकी रचना वि. सं. १२३८ में हुई है-में दिखते हैं । उसके बाद तेरहवीं सदी के अन्त भाग में ही और पांच संधिकाव्य मिलने हैं । उनके रचयिता थे आगमगच्छीय जैनाचार्य जिनप्रभसूरि । १३ वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में विद्यमान जिनप्रभसूरि को कई अपभ्रंशभाषाबद्ध लघु रचनाएं प्राप्त होती हैं, जैसे कि --- 'धर्माधर्मविचार कुलक,' 'आत्मसंबोधकुलक,' 'सुभाषित कुलक,' 'भव्यचरित,' 'भव्यकुटुम्बचरित,' 'गौतमचरित्र कुलक,' 'चाचरिस्तुति, 'गुरुस्तुतिचाचरि,' 'नेमिरास,' 'अन्तरङ्गरास,' 'मल्लिनाथचरित्र,' 'महावीरचरित्र,' 'जम्बूचरित्र', 'सुकोशलचरित्र,' 'चैत्यपरिपाटी,' 'मोहराजविजय,' 'अन्तरङ्गविवाह, 'जिनजन्ममह,' 'नेमिनाथजन्माभिषेक,' 'पार्श्वनाथजन्माभिषेक' इत्यादि । जिनप्रभसूरि की रची हुई संधियां इस प्रकार हैं- (१) मदनरेखा संधि (२) नर्मदासुन्दरी संधि (३) चतुरङ्ग संधि (४) अनाथि संधि और (५) जीवानुशास्ति संधि । इनमें से प्रथम 'मदनरेखा संधि' ला. द. ग्रन्थमाला में शीघ्र प्रकाश्यमान 'मदनरेखा आख्यायिका' के परिशिष्ट में छप गई है। शेष अप्रगट चार में से अन्तिम दो यहाँ पर प्रथमवार प्रकाशित हो रही हैं । 'अनाथि संधि' का विषय प्रसिद्ध 'उत्तराध्ययन' सूत्रगत वीसवें महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन में प्राप्त अनाथि राजर्षि को कथा है । और 'जोवानुशास्ति संधि' का विषय-जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है-नीव को दिया गया उपदेश है।
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy