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श्रीवद्धमानरिविरचिता
[२१]
नमिर-नरवर-मउड-माणिक्कमणि-किरण-रंजिय-चलण देव लोय-लोयण-महसव । कर-कलिय-निव्याण-सह सुह-निहाण पणमंत-वासवः ।। पसरुट्ठिय परमायरिण जे तुह पय पणमंति । ते लंधेविणु भव-जलहि नमि निव्वाणह जंति ॥
[२२]
देव कोड्डिण कुमर-भावम्मि हरि-संखु पई करि करिवि वयण-पवणि ज भरिउ तवरवणि । 'नं खुद्ध नायव मयल हरि स-संकु संजाउ निय-मणि ।। सायर सयल झलज्झ लिय गिरि टलटलणह लग्ग । कंपिय धरणि धसक्कियह धरणिंदह फण भग्ग ।
[२३]
विसम-संकडि समर-संघट्टि अइ-दुत्तरि जलहि-जलि लहिरि-गहिरि विलसंत-जलयरि । निरु निवडिय वण-गहणि सीह-सप्प-करि-कुविय-दुहरि ॥ पासनाइ-नाम-गहणि नर नित्थरहि न भंति । अॅजिवि संसारिय-मुहई दुहहँ जलंजलि दिति ॥
[२४]
तिसल-देविहि गम्भि वड्डति पई देव सिद्धत्थ-धरि जं सिरीई वित्थारु लद्धउ । तिं कारण कारुणिय 'वद्धमाणु' भण्णसि पसिद्धउ ॥ वर-नाणोदय-गिरि-चडिय पयडिय-भुवणाणंद । तियण-बंधव तेग निहि जय पहु वीर जिणिंद ॥
इय निम्मलगुणगणवद्धमाणपहुपणयपायकमलाण । आसंसारं सेवा मह होज्ज जिणिंदचंदाण ॥ १ भरिय जे०. २. तह खुद्ध जे०। ३. तिरीप जेव।।