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चतुर्विंशतिजिनस्तुतिः
[१७]
सयल-सुर-पहु-मंउलि-परिगलियमंदार-मंडिय-चलण मह-जोह-भड-बाय-भंजण । दैप्पुध्धुर-मयण-भड- मुक्क-दुसह-सर-पसर-गंजण ॥ कुंथु कयत्थीकय-सयल- सचराचर-जिय-लोय। तिणु जिम्ब छड्डिय पइ जि पैरि कर-गय भारह-भोय ॥
[१८]
सरस-सररुह-नयण नय-निउण छक्वड-महि-महिल-वडः महिय-महिम महि-वट्ठ-भूसण । पायडिय-अपवग्ग-पह और जिणिंद उम्मग्ग-नासण ॥ ताहँ घरंगणि सयल-सिरि सग्ग मोक्ख करि ताहुँ । खणु वि न चित्तहँ उत्तरहि तुह नामक्खर जाहँ ॥
[१९]
देव तिहुयण-पयड-माहप्प सद्धम्म-नायग ति-जय- पहु पहीण-जर-मरण-तम-भर । मय-मल्ल-पडिमल्ल जिण मल्लिनाह पणयामरेसर ॥ कुमरत्तणि कय-वय-गहण सामिय सामल-देह । विय कुमुय-पडिबोह-ससि तव-सिरि-निय-कुल-गेह ॥
[२०]
सजल-जलहर-नील-भमरोलिनीलुप्पल-दल-गवल- सरिस-देह सम-रसिय दयवइ । अपमेय अ-पमाण-गुण मुणिय-वत्थु-परमत्थ मुणिवइ ।। सोम निरंजण कारुणिय सुव्वय भविय-सरण । हरिवंसुब्भव भव-महण मई तुह सेव पवन्न ॥
१. "मउड-परि° पा०॥ २ दप्पुद्धर' पा०॥ ३. पर पा॥ ४. भारय-भों जे०॥ ५. अरि जे० ॥ ६. नीर-भमरालि जे०।। ७. देह दय-रसिय जे०।।