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चतुर्विंशतिजिनस्तुतिः
सुविहि-सुविहिय-समण-कय-सेव करुणामय-मयरहर महिय-मोह मय-माण-मरण । संसार-भय-भोय-मण- जण-सरण कम्मट्ट-चूरण ॥ महइँ महग्घइँ मणहर तिहुयणि जाइँ सुहाइँ । तुह पय-सेवई सुविहि जिण लीलई लब्भहि ताइँ ॥
[१०]
भुवण-वच्छल अतुल-बल-सार संसार-सर-सोस-यर तरणि-तेय सीयल सुहकर । सुह-सासण ससि-वयण भविय-कमल-बोहण-दिवायर ॥ जण मण-माणस-सर-नलिण- निलयण-राय-मराल । मन विरमउ तुह गुण-गहणि मज्झ जीह सयकाल ॥
[११]
दिव्य-नाणिण दिट्ठ-दट्टव्व दय-रसिय खम-दम-भवण नलिणि-नाल-सुकुमाल-मुय जुय । सेयंस जिण-वर-तिलय सेय-निलय सुर सत्थ-संथुय ॥. तिहयण-पणमिय-पाय पहु विन्नत्तिं निसुणेज्ज । भवि भवि मह तुह पय-कमलि लोयण-भमर वसेज्ज ॥
[१२]
दुद्दमिदिय-दप्प-कप्परण मण-मक्कड-रुद्ध-पहु कम्म-केलि-वण-गहण-कुंजर । सरणागय-दुत्थियहँ वासु पुज्न दढ-वज्ज-पंजर ॥ अजर निरंजण जग-तिलय पणयहँ पूरिय-आस । निम्मल निम्मल-नाण-निहि कय-निव्याण-निवास ॥
१. पइ-से जे० ॥ २ जीय सय' जे० ॥ ३. 'जुय । सुर दुंदहि गहिरसर सेयनि लय सेयंस जिणवर ॥ तिहुयण पा० ॥ सय निलय जे.