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श्रोवर्द्धमानसूरिविरचिता
भुवण-भूसण जण-मणाणंद पुरिसोत्तिम परम-पय- बद्ध लक्ख अक्खय निरंजण । सु-पसत्थ-मंगल-निलय भुवण-भाणु भव-भय-निरंभण ।। संवर-सिद्धत्या-तणय निज्जिय-विसय-कसाय । अभिणंदण जिण तुहुँ सैरणु तिहुयण-पण मिय-पाय ॥
सुमइ साहिय-सिद्धि-अत्थाण सन्नान-दसण-चरण- णिलय नाह जैय-जीव-बच्छल । भव-रुंद-कंदुक्खणण- वर-वराह धर-धरण-पच्चल । मेहराय-कुल-कित्ति-कर कोह-दवानल-मेह । मंगलदेविहि अंगरुह कवणु लहइ तुह रेह ।।
विसय-विसहर-विसम-विस-वेयविद्धसण विणय-सुय तार-तेय तिहुयण-नमंसिय । पउमप्पह ! पउम-दल- दीह-नयण पंडिय-पसंसिय ॥ अप्पडिहय-वर-नाण-धर सोडिय-माण-मरह । एक्क-कालु नाणा-जियहँ संसय-दलण-घरट्ट ।।
सरस-सररुह-सुरहि-गुह-सास कुंदेंदु-निम्मल-चरिय मोह-तिभिा-दारण-दिवायर । तिजगुत्तम तम-रहिय भविय-कुमुय-बोहण-निसायर ॥ पयडिय-परम-पयस्थ पहु मुवण-त्तय-सु-पयास । मुह-निहि निहणिय-कम्म-मल जिणवर जयहि सुपास ॥
___सरय-ससहर-हार-नीहारहर-हास-गोखीर-सम- देह-वन्न वर-कित्ति-कुल-हर । चंदप्पह चंद-मुह चंद-कित्ति-धवलिय-दियंतर ॥ निय-कुल-नह-यल-चंद-सम कम्म-कलंक विप्लुक्क । संपइ सरइ न ताहँ पहु जे तुह सेवह चुरू ॥
१. भवण जे० ।। २. सरण जे० ॥ ३ अट्ठाण जे० ॥ ४. जइ-जोव ने ५. 'द कुंदक्ख जे० ॥ ६. म मण-र जे० ।।