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श्रीवद्धमानसूरिविचित रिसहनाहचरिय' अन्तर्गता
अपभ्र शभाषानिबद्धा चतुर्विंशतिजिनस्तुतिः
[१]
-पणय-पय-कमल कमलोयर-कय-चरण कमल-गब्भ-सम-वण्ण सामिय । रिसहेसर पढम-जिण पढम-धम्म-धुर-धरण-धोरिय॥ अट्ठावय-गिरिवर-पिहर- सेहर पुरिस-पहाण । ताहँ तह-द्विय भव-जलहि जेहि नै तुह कय आण ॥
[२]
अजिय निज्जिय-दुज्जयाणंग गय-लंछण गय-गमण अजर अमर सिव-मुह-निबंधण । सम-सायर पार-गय विजयदेवि-जियसत्तु-नंदण ॥ तं धणु धरणिहि भार-करु अहन विडाविडि-सत्थु । जेण न पूइउ सामि तुहुँ भव-सायर-बोहित्थु ॥
देव दुज्जय-मयण-मायंगकरड-यड-दारण-दरिय- हरि-किसोर भव-भत्रण-भंजण । भव-सायर-पारगय गुरु-पयाच नीरय निरंजण ॥ संभव भव-गताव-हर लक्खण-लंछिय-गाय । पुन्न-विहीणहैं दुलहिय तुह पय-पायव-छाय ॥
१. चलण पा० । २. जिण धम्म-पढम धुर जे० ॥ ३. अट्ठावइ-गि जे० ॥ ४. तहडिओ में पा० ॥ ५. न कय तुह आण जे० ।। ६. र पारगय विज पा० ।। ७. अहिव जे० ।। ८. तुहु पा० ॥ ९. ग-विकर जे० ॥ १०. र पायड परकम ॥ भव-सायर" पा० ।।