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________________ कालिदासनी नाटयोक्तिभो पछी बाकीना-आमां नारद तरफनुं बहुमान व्यक्त थाय छे. राजा पुरूरवा अने चित्रसेन गांधर्व एक बीजाने मळे छे त्यांर परस्परं हस्तौ स्पृशतः एम कयुं छे. अहीं ते समये मित्रो केवी रीते मळता दृशे ते दर्शायुं छे." ततः प्रविशति उन्मवेशी राजा (विक्रम ० ६८) मां पात्रना पहेरवेशनु पण सूचन छे. १४ कालिदासे मालविका • नी रचना भासने नजर समक्ष राखीने करी छे. परिणामे भासनी निष्क्रम्य- प्रविश्यनी युक्ति तेणे अपनावी है. आ योजनामा कोई कार्यार्थे पात्र प्रयाण करे भने तरत पार्छु फेरे, आपण स्वीकारी लेवानुं के कार्य सद्यः संपन्न थई चूकयुं छे, वास्तवमां आ हृद्य नाट्यात्मक आयोजन happy dramatic device नथी. माल० मां कालिदासे निष्क्रम्य - प्रविश्य नी युक्ति ९ वार अपनावी छे. जेमां ७ वार वच्चेनुं कार्य सद्यः संपन्न थयुं एम स्वीकारी लेवु पड़े छे. पण शाकु० मां लेखके आ प्रकारना आयोजननी मर्यादाओ समजीने तेने घटाडचं होय तेम लागे छे अने धनमित्रना मृत्यु पछीनी घोषणा सिवाय कयांय कार्य सद्यः संपन्न थई गयुं एवं मानी लेवुं पडतुं नथी. ७ कवि कयांक कर्णे जेवी नानकडी नाट्योक्ति आपे छे. तो सूतस्तथेति रथमुश्लेषयति, राजा नाटयेन रथमारोहति उर्वशी सनिश्वासं राजानमवलोकयन्ती सह सखीभिर्निष्क्रान्ता चित्ररथश्च । (विक्रम ० १४ ) जेवी सुदीर्घ रङ्ग सूचनाओ पण पूरा पाडे छे. विक्रम ० ना ४ अंकमा सविशेष एकपात्री अभिनयने अवकाश होवाथी विलोक्य, विभाव्य, विचिन्त्य वगैरे वैविध्यगर्भ सूचनो द्वारा अभिनय माटे वैविध्यनां द्वार कालिदासे खोली नांख्यां छे. परिक्रम्य जेवी सामान्य सूचनाने पण ते तो अनेकरीते दर्शावे छे, परिक्रम्य, परिक्रमितकेन गतिभेदेन, परिक्रामन्, ध्यानमन्दं परिक्रम्य, अवस्थासदृशं परिक्रम्य, सविमर्श परिक्रम्य वगैरे यथास्थाने जोई ठेवा. शाकु० ना ६ट्ठा अंकना मातलो प्रसंगमां रङ्गमंच पर झडपथी क्रियाओ करवानी छे, त्यां केवळ ११ वाक्योना वार्तालापमा कवि २० वार नाट्योक्तिभो आपी अभिनय माटेनी एक बाजु नटने सुगमता करी आपे छे तो बीजी बाजु पोतानी नाट्यसूझनुं दर्शन करावे छे. अनेक नाट्योक्तिओ माटे विक्रम० नो भूर्जपत्रप्रसंग अने माल० नो सर्पदंशप्रसंग नोधपात्र छे, कयांक लेखकनो वधु पडती चोकसाईना कारणे अनावश्यक नाट्योकित पण प्राप्त थाय छे. शाकु० ना १४. सरखावो समुपेत्याथ गोगलान् हास्य हस्तग्रहादिभिः । विश्रान्तं सुखमासीनं प्रपच्छुः पर्युपगता: ॥ श्रीमद्भागवत १०-६५-६५ ।
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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