SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कालिदासनी नाटयोक्तिओ लेवानुं के राजा रथस्थ छे के सूत रथस्थ छे," आ ज रीते आरोहण अने अवतरण दर्शाववा विशिष्ट प्रकारनी गतिनो आश्रय लेवानो होय छे, आकाशगमन दर्शाववा आकाशमा उडवानुं होतुं नथी पण अमुक प्रकारनी गतिमां चाले एटले प्रेक्षकोए मानो लेवानुं के आ पात्र आकाशगमन करे छे. आथी समजो शकाय छे के ए जमानामां नाटक जोवा जनारनी मानसिक तैयारो अथवा नाटक समजवा माटेना न्यूनतम ज्ञाननी अपेक्षा रहेती हो, कालिदासना प्रेक्षको अभिरूपभूयिष्ठ हता एम तेणे ज नोंध्यु छे ने ! भरतना नाट्यशास्त्रमा उपलब्ध रङ्गसूचनो के अभिनयना स्थानो उपरांतना केटलांक नवां के मौलिक कही शकाय तेवां सूचनो कालिदासनां नाटकोमा अनेक छे. जेमा लेखकनी सूक्ष्म नाट्यसूझर्नु सुभग दर्शन उपलब्ध थाय छे, राजा अङ्गुल्यानुमन्यते (माल०) विदूपकं संज्ञापयति (वि०६०), मणिमादाय मूटिने वहति (वि० ८२), मुद्रास्थानं परामृश्य (शा० ११८) चित्रलेखा मोचनं नाटयति (वि० १४) शरसंधानं नाटयति (शा० ६) कलशमावर्जयति (शा० १६) वृक्षसेचनं रूपयति (शा० १२) श्रुतमभिनीय (शा० ५९) अहीं कोई विशिष्ट शास्त्रीय के पारिभाषिक अभिनय नथी, पण सहेजमां समजीने कोई पण नट ते करी शके तेवां आ सूचनो छे छतां तेमा नाट्यकारनी तख्तासूझ के रङ्गमंचसमानता प्रत्यक्ष थाय छे. ___ कालिदासे दर्शावेल कतिपय नाट्योक्तिओनो अभिनय केम करवो ए शास्त्रकारो के नटो माटे कोयडारूप पण छे. आजे तो तेनो परम्परा नष्ट थई होवाथी तेनुं मूळ पण सूचवी शकाय तेम नथी. उदा० सिद्धमार्गमवगाह्य, अथवा नामाक्षराण्यनुवाच्य सापत्यतां रूपयति (वि० ९०) अधिकारखेदं निरूप्य (वि. १०८) अहीं सिध्धमार्ग- अवगाहन, सापत्यतानो अभिनय के अधिकारखेदनुं निरूपण नट केवी रीते करी शके ? अथवा करतो हशे ? कपोतहस्तकं कृत्वा जेवी नाटयोक्तिने समजाववा टीकाकार संगीतरत्नाकरमाथी अवतरण आपे छे के कपोतोऽसौ करौ यत्र श्लिष्टमलाग्रपावको । प्रणाम गुरुसंभाषे । गजेन्द्र गडकर-एक अन्य व्याख्या तेनुं मूळ दर्शाव्या विना नोंधे छे. सर्वपाश्वसमाश्लेषात् कपोतः सर्वशीपकः । भीतो विज्ञापने चैव विनये च प्रयुज्यते । १२ रथस्थस्यापि कर्तव्या गति चूर्णपदैरथ । समपादं तथा स्थानं कृत्वा रथगतिं व्रजेत् ।। १३ मा. शा. १२/९२
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy