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________________ ईश्वर में व्यक्तिगत मतभेद होने पर भी उनकी फरपट द्वारा मांट करते। लिए किये गये निर्णय का अनुसरण कर सभ ईश्वर कमरे का विंग विना तृप्टिकार्य करते है तो उसका अर्थ या होगा कि इन नम्। इससे यह सिद्ध होता है कि ईश्वर एक ही है। ईश्वर सर्वत्र है अतः कोई भी विषय का कोई भी विशेष समाना। इसी वजह से है। ऐसे अज्ञान को लेकर उत्पन्न होनेवा-यम-यालानन ममें ना है। इसलिए मिथ्याज्ञानमूलक राग-द्वेष भी उममें नहीं। राग मा न होने से प्रवृत्ति भी उसमें नहीं । प्रवृत्ति न होने से नाधम भी इसमें नामाक प्रथा ही धर्माधर्म का कारण है। धर्माधर्म उसमें न होने से सम्ब-दुन्यमा मन। सभी विषयों का अनुमय उसमें मना रहने के कारण उममें मुनि भीडा सम्बर भी नहीं। अतः कुछ न्याय-वैशपिक घर में मंन्या, पारमा पृथकध, मयोग, विभाग, ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न ये आठ गुण मानते हैं। और अन्य मी बाद में ही अव्याहत क्रियाशक्ति का समावेश कर के इच्छा और प्रयान का मंद में ही अन्तर्भाव करते हैं। इस प्रकार वे इन्छा और प्रयान को युद्ध में अलग नही माना अतः उनके मत में ईश्वर में छह ही गुण है। ईश्वर र बद्ध है और न मुन। उसे नित्य मुक्त कह सकते हैं।" (८) उदयनाचार्य और ईश्वर न्याय-वैशेपिक परंपरा में ईश्वर विषयक निरूपण की पराकाष्ठा उदयनाचार्य कुल 'न्यायकुसुमांजलि' और 'आत्मतत्त्वविवेक'मष्टिगोचर होनी है। मीलिए दयनाचार्य स्वयं ही ईश्वर को उद्देश कर कहते है कि तेरा अस्तित्व मेरे अधीन है (R तर स्थितिः)। उदयनाचार्य ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के न्यिा निम्न तक अपांचन करते हैं : (१) कार्यात् 17-जगत में पृथ्वी आदि हैं। वे विनाशी, सावयव और अयान्नर परिमाणवाले (अर्थात अणुपरिमाण और परममहापरिमाण के दीव के परिमाणवाले हैं। अतः ये सभी कार्य हैं। उनका कर्ता नजर नहीं आता। किन्तु कार्य कुर्मा के बिना असंभव है। अतः उनका कोई न कोई कर्ता तो होना ही चाहिए। पट का कर्ता कुम्हार है। उसी प्रकार पुवी आदि का भी कोई फर्ता हेही। वह कभी ईश्वर ही है। (२) आयोजना ७ - प्रलय में परमाणुओं में कर्म (=गति, Motion) हना है किन्तु उन कर्मों से परमाणुओं का कार्यारम्भक मंयोग नहीं होना. परिणामम्बर ५ मा ओं में से द्वयणुकादि क्रम से कार्य नहीं होन। अनः प्रलय में परमाणु में जो कर्न होता है उसे अनारंभक (berelt of causal efficiency) र्म कहा गया है। परमाण आं में से कार्य बनने के लिए परमाणुओं का कार्यारम्भक संयोग होना चाहिए, और परमाणुओं का ऐसा संयोग होने के लिए परमाणुओं में' आरंभ कर्म उत्पन्न होने वा
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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