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नगीन जी. शाह
परमाणां के आरम्भक संयोग का कारण आरंभक कर्म है । इस आरंभक कर्म को परमाणु
में उत्पन्न कर के उसके द्वारा परमाणुओं का संयोजन करनेवाला कोई न कोई होना चाहिए और वही ईश्वर है। ईश्वर को भाने विना अनारंभक कर्म के स्थान पर आरंभक कर्म होने की कोई उपपत्ति नहीं मिलती। अतः परमाणुओं में आरंभक कर्म उत्पन्न करनेगा और परमाणुओं के आरम्भक संयोगों का प्रयोजक-आयोजक-किसी न किसी को मानना ही चाहिए। और वहीं ईश्वर है।।
(३) न्याद 07--(अ) गुरुत्ववाली वस्तु नीची गिरती है। गुरुत्ववाली वन्तुआं के पतनको गकना चेतन के प्रयत्न से होता है। हमारा प्रयत्न हमारे शरीर को नीचे गिरने से रोकता है। उडने हुए पक्षी का प्रयत्न उसके शरीर को नीचे गिरने से रोकने का है। उडते पक्षी की चांच से पकडी हुई जड वस्तु उस पक्षी के प्रयत्न से नीचे नहीं गिरती क्योंकि प्रयत्नवाले पक्षीने उसे धारण की है। गुरुत्ववाली जड वस्तु को किसी प्रयत्नवाल वेतन व्यक्ति ने धारण की हो तो वह नीचे नहीं गिरती । ग्रह, उपग्रह. आदि अचेतन होने पर भी वे नीचे नहीं गिरते-अपनी कक्षा से च्युत नहीं होते, अतः मानना पड़ेगा कि किसी प्रयत्नवाले चेतन व्यक्ति ने उसे धारण कर सला होगा। यह व्यक्ति ही ईश्वर है। इस प्रकार ईश्वर समग्र ब्रह्माण्ड का धारक है ।
(ब) वृत्याद : शब्द में 'आदि' पद है । उस 'आदि' पद से नाश अभिप्रेन है। नर्क इस प्रकार है-जिस प्रकार कार्य की उत्पत्ति के लिए निमित्तकारण ( =उत्पादकर्ना) आवश्यक है उसी प्रकार कार्य के नाश के लिए भी निमित्तकारण (नाशकर्ता) आवश्यक है। न्याय-वैशपिक मत के अनुसार वस्तु स्वभाव से ही नष्ट नहीं होती। वस्तु का विनाश निहें तुक नहीं। यदि वस्तु का नाश निर्हेतुक माना जायगा तो वस्तु क्षणिक वन जायगी और स्थायी द्रव्य जैसी कोई वस्तु ही नहीं रहेगी। इसलिए न्याय-वैशेषिक वस्तु के नाश को सहेतुक मानते हैं। घडे को लकडी से झटका मारने में आता है तब ही घडा आघात से फूटता है। यहां झटका मारने चाला-आघात करनेवाला घटनाशका को है । उसी तरह जगत के जिन कार्यों का नाशकर्ता मालूम नहीं होता उसका भी नाशकर्ता होना ही चाहिए; वह है ईश्वर । तथा समग्र विश्व के नाशकर्ता के रूप में ईश्वर को मानना चाहिए। ईश्वर की इच्छा से सर्गान्त में विश्व को जबरदस्त आघात लगता है और सभी कार्य परमाणुओं में विघटित हो जाते हैं। यहां आघात परमाणुओं में अनारंभक गति और वेग पैदा करते हैं। आघात से उत्पन्न हुआ वेग अनारंभक कर्म को प्रलयान्त तक चालू रखता है। अतः विश्व के नाशकर्ता के रूपमें चेतन व्यक्ति को माने बिना छूटकारा नहीं। वह चेतन व्यक्ति ही ईश्वर है।
(४) पढान्-(अ) अमुक अर्थ (=वस्तु) के लिए अमुक पद का प्रयोग होता है। 'अमुक शब्द का अमुक अर्थ है' ऐसा शब्द-अर्थ का संकेत है। इस संकेत का ज्ञान हमें गुरुजन देते है, किन्तु 'अमुक वस्तु अमुक शब्दवाच्य है' ऐसा सकेत सब से