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नगीन जी. शाह
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ईश्वर में क्रिया है या नहीं ? ईश्वर में प्ररेणा रूप क्रिया है, चेष्टा रूप क्रिया नहीं। वह अन्य कारणों को कार्योत्पत्ति में प्रेरित करता है। वह किसी से प्रेरित नहीं होता। यह स्वतंत्र है। अर्थात् उसमें परिस्पंदनरूप या चेष्टारूप क्रिया नहीं। उसे शरीर ही नहीं, अनः उसमें परिस्पन्दनरूप या चेप्टारूप क्रिया असंभवित ही है ।
जयंत भट्ट और ईश्वर उद्योतकर न ईश्वर के जगतकर्तृत्व की स्थापना की है और उस संदर्भ में उठनेवाले अनेक महत्त्व के प्रश्नों की चर्चा भी की है। अब हम जयन्त भट्ट की ईश्वर विपयक मान्यता का विचार करेंगे।
सर्व प्रथम वे ईश्वर का अस्तित्व इस प्रकार सिद्ध करते हैं। पृथ्वी आदि कार्य है क्योंकि वे अनित्य हैं और सन्निवेशवाले हैं (-रचनावाले हैं, सावयव हैं)। वे कार्य होने से उनका भी कोई न कोई कर्ता होना चाहिए । कार्यका कर्ता होता ही है। कर्ता के बिना कार्य उत्पन्न होता ही नहीं। उदाहरणार्थ, घट कार्य है और उसका कतों कुम्हार है। कर्ता के बिना घट नहीं हो सकता। इस प्रकार पृथ्वी आदि कार्यो का कर्ता सिद्ध होता है और वही ईश्वर है ।
इसके सामने कोई तर्क करता है कि कई कार्या का कर्ता दिखाई नहीं देता। वेजोनी भूमि में पौधे उग आते हैं। उनका कोई कर्ता नजर नहीं आता। ___इस तर्क का खण्डन करते हुए जयन्त कहते हैं कि जो वस्तु दिखने योग्य होने पर भी याद दिखाई नहीं देती हो तो वह नहीं है। ऐसा निश्चय किया जा सकता है किन्तु ईश्वर के अशरीरी होने से वह दिखने योग्य ही नहीं। अतः दिखाई नहीं पडता इसलिए उसका अस्तित्व नहीं ऐसा निश्चय किया नहीं जा सकता।
___ यहां पुनः कोई आपत्ति उठाता है कि दृष्ट पृथ्वी, पानी आदि से ही अकृष्टजात पौधे की उत्पत्ति माननी चाहिए। अदृप्ट ईश्वर को उसका कर्ता मानना अनुचित है।
इसका उत्तर देते हुए जयन्त कहते हैं कि यह आपत्ति अयोग्य है। सभी परलोकवाटी अन कर्मों की कल्पना क्यों करते हैं? कर्म की कल्पना इसिलिए की जाती है कि जिससे जगत के वैचित्र्य का स्पष्टीकरण हो सके। इसी तरह से अचेतन कारक चेतन से प्ररित न हो तो कार्यो की उत्पत्ति का स्पष्टीकरण नहीं हो सकता। अतः जहां कर्ता दृष्टिगोचर नहीं होता है वहां भी कर्ता की कल्पना की गई है ।
कोई शंका करता है कि कार्य से तो सामान्यतः कर्ता का अनुमान होता है किन्तु विशेष प्रकार के कर्ता-आत्मविशेष ईश्वर का अनुमान नहीं हो सकता । इस शंका का समाधान करते हुए जयन्त कहते हैं कि आगम से विशेष प्रकार के कर्ता का ज्ञान होता है। यदि कहो कि आगन से उसका ज्ञान मानने से इतरेतरालय दोष आयेगा क्योंकि ईश्वर आगम से सिद्ध होगा और आगमप्रामाण्य ईश्वरकर्तृत्व