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________________ १२ नगीन जी शाह कुछ दार्शनिक मानते हैं कि ईश्वर क्रीडा करने के प्रयोजन से जगत को उत्पन्न करता है। यह मान्यता भी बराबर नहीं । क्रीडा तो आनंद पाने के लिए होती है, और आनन्द प्राप्त करने का प्रयत्न तो वही करता है जो दुःखी होता है किन्तु ईश्वर में तो दुःख का अभाव है, अतः वह क्रीडा करने के लिए तो जगत उत्पन्न नहीं करना । कुछ दार्शनिक कहते है कि ईश्वर अपनी विभूति का प्रदर्शन करने के लिग विचित्र और विराट जगत उत्पन्न करता है। किन्तु यह मत भी बराबर नहीं। वह किन लिए अपनी विभूति का प्रदर्शन करना चाहता है ? ऐसे विभूतिप्रदर्शन से क्या उसके नित्य रोवर्य में वृद्धि होती है ? नहीं, विलकुल नहीं। वह ऐसा प्रदर्शन करने का बन्द करे तो भी उसके नित्य ऐश्वर्य में कोई न्यूनता आनेवाली नहीं। तो फिर ईश्वर जगत किस लिए बनाता है ? उद्योतकर का उत्तर है कि वह उसका स्वभाव है इसलिए । पृथ्वी वस्तुओं को धारण करती है क्योंकि वह उसका स्वभाव है। उसी तरह ईश्वर जगत को उत्पन्न करता है क्योंकि जगत को उत्पन्न करना यह उसका स्वभाव है। यहां उद्योनकरने यह उत्तर नहीं दिया कि जीव अपने कर्मों के फल भोग सके इसलिए ईश्वर जगत को उत्पन्न करता है। यह खास ध्यान देने योग्य है। ____ याद जगत के कार्यो का उत्पन्न करने का ही स्वभाव रखता हो तो वह निरन्तर कार्यों को उत्पन्न करता ही रहेगा, कभी भी विराम को प्राप्त नहीं होगा। यदि अ-कार्यको उत्पन्न करने का उसका स्वभाव हो, ब-कार्य को उत्पन्न करने का उसका स्वभाव हो, क-कार्य को उत्पन्न करने का उसका स्वभाव हो, तो उसका वह स्वभाव हर एक क्षण रहेगा ही और परिणाम स्वरूप उसे अ, ब, क...n कार्य एक ही क्षण में एक ही साथ में करने चाहिए, अर्थात वह सभी कार्यों को कम से करता है यह मत घटित नहीं होता। ___ उपरोक्त शंका का समाधान करते हुए उद्योतकर कहते हैं कि निर्दिष्ट दोष आते नहीं क्यों के कर्ता बुद्धिमान है और उसका कर्तृत्व सापेक्ष है। वह बुद्धिमान और सापेक्ष कर्ता होने से सभी कार्यों को एक साथ उत्पन्न नहीं करता । जिसकी कारणमामग्री उपस्थित नहीं उसको वह उत्पन्न नहीं करता। जगत के सभी कार्यो को उत्पन्न करने का स्वभाव होने पर भी उन सभी कार्यों को एक साथ उत्पन्न नही करता क्यों कि उस उस कार्य को तभी उत्पन्न करता है जब उस कार्यरूप फल जिस जीव को भागना होता है उस जीयका उस फल के अनुरूप कर्म का विपाककाल हो। बुद्धिमत्ता के बिना ईश्वर जगतका कर्ता नहीं हो सकता। इसलिए ईश्वर में बुद्धिगुण तो मानना ही चाहिए। उसकी बुद्धि अतीत, अनागत, और वर्तमान सभी विपयों को (अर्थो को) प्रत्यक्ष जानती है। उसकी बुद्धि परोक्षज्ञानरूप नहीं। उसकी बुद्धि नित्य है। बुद्धि के नित्य होने से उसमें संस्कारगुण नहीं हो सकता। सरकार के न होने से उसमें स्मृति भी नहीं
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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