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________________ नगीन जी. जाह सम्बन्धका मान होने पर ही वह म स अनि का अनुमान कर सकता है। उसी नगद चिकन फल की प्राप्ति के लिए उस फल और उसके कर्म के बीच के नियत सम्बन्ध को जानना जरा इम ज्ञान को देनेवाला ईश्वर है। कानों में पट मल, मुक्तिका माना है। गर्मी मुबित (दुःखमुनि) चाहते हैं। उस इन्छिन फट के का कौनसा कर्म करना चाहिए और कैसी साधना करनी चाहिए, किन कमसे करनी चाहिए इसका ज्ञान साधना कर दुःखमुक्त हुए जीवन्मुक्त देते हैं। जीवन्मुक्त उपदेष्टा है, पथप्रदर्शक है। इस तरह संभव है कि गौनम के मन में जीवन्मुवन ही ईबर हो। (३) वात्स्यायन और ईश्वर हमने देखा है कि कर्म-फल के नियत सम्बन्ध का ज्ञान करानेवाले के रूप में ईश्वर का वकार गौनमने किया है। उस ईश्वर का स्वरूप क्या है इसकी स्पष्टता वात्स्यायनने अपने भाग्य में (१.१.२१) की है। वह इस प्रकार है (a) गुणनिटालातरी नावात्मकरात कल्पान्तरानुपतिः । धर्मनिप्याबान महान्या मल नयनानिसम्ममा चमिमिष्टान्मान्नरमीश्वरः । तस्य च धर्मसपाधिफलमणिमा नष्टविधमेश्वर्यम् । ईश्वर आत्मा ही है। आत्मा से अतिरिक्त कोई नया द्रव्य नहीं है। ईश्वर अन्य आत्मा की तरह ही है, किन्तु अन्य आत्मा और उसमें भेद इतना ही है कि अन्य आत्माओं में जो गुण होते हैं वे ही गुण उसमें होते हैं किन्तु उसके गुणों में शिष्टय होता है। वह वैशिष्टय क्या है ?--अन्य आत्माओं में मिथ्याज्ञान, अधर्म (अधर्मप्रवृत्ति, बलेशयुक्त प्रवृत्ति, रागद्वेपयुक्त प्रवृत्ति) और प्रमाद होता है। ईश्वरने उनका नाश किया है। उससे उसमें ज्ञान (सम्यक ज्ञान, विवेकज्ञान), वर्ग (धर्सप प्रनि, क्लेशहित प्रवृत्ति) और समाधिरूप सम्पत्ति होती है, जब कि अन्य आन्माओ में वह नहीं होती। उस के अन्दर धर्म के (धर्म प्रवृत्ति, क्लेशरोहन प्रवृति) और समाधि के फल रूप आगमा आदे रूप पश्चर्य होता है, जबकि अन्य आत्माओं में वह नहीं होना। इस तरह अन्य अर्थात् संसारी आत्माओं से उसका भेद है। वात्स्यायनने मुक्त आत्माओं से ईश्वर का भेद कहा न होने पर भी स्पष्ट है। मुक्त आत्मा में कोई आत्मविशेषगुण होता नहीं जब कि ईश्वर में धर्म (धर्मप्रवृत्ति), ज्ञान, समाधि और ऐश्चर्य होता हैं। इस प्रकार ईश्वर आत्मा ही है, इसलिए संसारी और मुक्त आत्माओं से उसका भेद नहीं है। ईश्वर, संसारी और मुक्त ये तीन अला जातियां नहीं किन्तु एक ही जाति है। जिस प्रकार संसारी और मुक्त आला आत्मा ही हैं उसी प्रकार ईश्वर भी आत्मा ही है।
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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