________________
ह'वर
इस प्रकार जो आमा अनी अधर्मप्रवृत्ति बा, ७.पने मिनाहान का और अपने प्रमाद का नाश करके धर्मप्रवृत्ति, सम्यवज्ञान और समाधि संपादन करना है वह वात्स्यायन के मत में ईश्वर है। ईश्वर नित्यमुक्त नहीं । इम अर्थ में प्रत्येक जीर में ईश्वर बनने की शक्यता रही हुई है और ईश्वर अनेक भी हो सकते है। हम से यह सूचित होता है कि वात्स्यायन का ईश्वर विवेकी और बलगर्गहत जीवन्मुक्त ही है। (b) सङ्कल्पानुविधायी चारय धर्मः प्रत्यात्मवनीन धर्ममन्चयान पनि
प्रवर्तयति । एवं च स्ककृतस्याभ्यागमस्यालोपन निर्माणमाकान्य म्य रमक,
वदितव्यम् । संकल्प होते ही उसके अनुरूप उसका धर्म (=पूर्वकृत वाम प्रकार का कम) आत्मगत (=प्रत्यात्मवृत्ति, प्रति आभिमुख्यार्थ) पूर्वकृत धर्माधर्म के संचयों को (संचित क को) विपाकोन्मुख करता है और पृथ्वी आदि भूतों को (निमांगकाय बनाने में द्वयणुकादिक्रम से) प्रवर्तित करता है। (और इन निर्माणकाचों की सहायता से वह अन्तिम जन्म में पूर्वकृत कर्मों के फलों को भोग लेता है। अपने किये हुए कर्मा के फलों का भोगे विना लोप होता नहीं ऐमा नियम होने से निर्माणकाय के लिए उसके संकल्प का अव्याघात (अर्थात सकल्प से ही निर्माणकाय बनाने का उसका सामर्थ्य) उसके अपने पूर्वकृत कर्म का ही फल है सा मानना चाहिए।
इससे यह फलित होता है कि वात्स्यायन का ईश्वर यह जीवन्मुक्त विवेकी
(c) आप्तकल्पश्चायम् । यथा पिता अपत्याना तथा पितृभूत ईश्वरो भूतानाम ।
धर्मप्रवृत्तिवाला, सम्यक्रूज्ञानवाला, और समाधिसम्पन्न ईश्वर आप्तकल्प हैजिस के वचन में विश्वास रख सके ऐसा है। जैसे पिता पुत्र के लिए आप है उसी प्रकार ईश्वर सब भूतों के किए आप्त है । पिता पुत्रका मार्गदर्शक है, ईश्वर मब भूना का मार्गदर्शक है। पिता पुत्र के हित-सुख के लिए उसे उपदेश देता है, ईश्वर सब भूतों को दुःखमुक्ति के लिए उपदेश देता है। वाल्यायन कंवल आफ्नता के विषय में ही पिता-पुत्र और ईश्वर-जीव के सम्बन्धों के बीच साम्य बताना चाहा है। इस दृष्टान्त (analogy) को इससे अधिक लंबा करना वात्स्यायन को 5ट नहीं । उदाहरणार्थ, जैसे पुत्र को पिता पैदा करता है वैसे जीव को ईश्वर पदा करना है, अथवा जैसे पुत्र पिता का अंश है वैसे जीव ईश्वर का अंग है. इत्यादि । मा ईश्वर वात्स्यायन को मान्य नहीं। वात्स्यायन के मत में ईश्वर मा व्यक्ति है जिसके उपदेश में विश्वास रखा जा सकता है: ईश्वर उपदेष्टा है, पथप्रदर्शक है, मोक्षमार्ग का नेता है।
इस पर से यह स्पष्ट होता है कि क्लेशहित और विवेकज्ञानधारी जीवन्मुक ही ईश्चर है।