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और दूसरा ईश्वर की अवगणना करता है । वस्तुतः तो कर्म-फल के बीच नियन सम्बन्ध है ही। अमुक कर्म करो और वह अपना फल देगा ही, कृन कर्म का फलने के लिए गवर की आवश्यकता नहीं यह बात सच है फिर भी इन्छिन फल प्राप्त करने के लिए कौनसा कर्म किया जाय यह जानना जरूरी है। इस कर्म का ना फल है यह मान तो उस फल की प्राप्ति चाहने वाले को होना ही चाहिए। जा अवश्य नाटा है यह बात सच है किन्तु मरने की इच्छा करनेवाले को उसका मानना है है कि अमुक पदार्थ प्राणघातक है। वह ज्ञान न हो तो यह जिन पदाथों कोना है वह उसके प्राणों का घात न भी करें। अमुक औपनि के देने से अमुक अंग मिटना है। उस औषधि को अपना कार्य करने के लिए कर आकारकता ना.. रहती। वैद्य की आवश्यकता नो रोगी के ज्ञान के लिए कमरोग. उसे कौनसी दवा लेनी चाहिए। रोगी रोग मिटाना चाहना है किन्नु म.in कौनसा कर्म योग्य है उसका उसे ज्ञान नहीं है। यह ज्ञान से वैद्यना। और वह उस ज्ञानपूर्वक जव उस कर्म को करता है तब उसे उनका इन्छिन फर मिल्ना है। अज्ञान से जैसी चाहे दवा ले उससे उमका रोग मिटना नहीं किन्तु ऊल्टी हुई दवा अन्य तकलीफ पैदा कर देती है। अर्थात इच्छित फल प्राप्त करने के लिए उस फल के अनुरूप कार्य क्या है उसका ज्ञान कर्म करनेवाले को हाना जमी है। यह ज्ञान लौकिक विपय में तो उस उस विषय के जानकार देने किन गग आग्द दापों से मुक्त होने के लिए किस कला में कौनसा कर्म करना. कमी माधना करनी चाहिए इसका ज्ञान तो (रागादि देापमुक्त सर्वज्ञ) ईश्वर ही करा सकता है । म नगरे कर्म और उसके फल के बीच नियत सम्बन्ध है, किन्तु उस नियन सम्बन्ध को जानने के लिए हमें (सर्वज्ञ) ईश्वर की आवश्यकता है ऐसा मत फलिन होता है। ईश्वर केवल उपदेप्टा है, मार्गदर्शक है, कर्म-फल के नियत सम्बन्ध का ज्ञान करानेवाला है। उस अर्थ में ही वह कर्मकारयिता है। वह बल्यन किनी में कर्म नही करवाता है । वैद्य केवल दया बताता है किन्तु हम ऐसा ही कहते हैं कि बंधने रोग मिटाया है। उसी तरह से ईश्वर भी राग आदि रोग का ईलाज बताता है फिर भी हम कहते हैं कि ईश्वर ने यह रोग मिटाया-ईश्वर ने फल दिया, ईबरने अनुग्रह किया। उस अर्थ में ही ईश्वर फलकारयिता या फलसंपादयिता है। इस प्रकार ईश्वर जीव को इच्छित फल (मोक्ष) के अनुरूप कर्म कौनमा उनका ज्ञान कराकर उसके प्रयत्न को, उसकी साधना को सफल बनाता है। यदि उसको यह ज्ञोन न कराया जाय तो उसे इच्छित फल की प्राप्ति नहीं होगी।। ___ कर्म-फल के बीच नियत सम्बन्ध है। इच्छित फल के इच्छुक को म फल, और उसके अनुरूप कर्म के बीच के नियत सम्बन्ध को जानना चाहिए। जानपूर्वक यदि वह कर्म करता है, तो उसे इच्छित फल मिलता है। उस जान को देनेवाला ईश्वर है। उदाहरणार्थ, धूम और अग्नि के बीच कार्यकारणभावका नियन सम्बन्ध है, किन्तु जब तक इस सम्बन्धका ज्ञान व्यक्ति को न हो तब तक वह हम परसे अग्निका अनुमान नहीं कर सकता। धूम और अग्नि के बीच के नियन