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________________ नगीन जी. गाह (२) न्यायसूत्रकार गौतम और ईश्वर गौन के न्यानसूत्र में ईश्वरविषयक तीन सूत्र हैं। इन तीन सूत्रों में पुरुपकर्म और उसके फल के विषय में ईश्वर का नया कार्य है वह बताया गया है। प्रम दोसन विधियों को मतों को देकर तीसरे सत्र में गौतम ने अपना विहां काम किया है। जज रात्रों को क्रमशः समझने पर गौन की ईश्वरविषयक मान्यता चिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। 12.एकाफिला र्शनात् ('. १. १९.) पुम्प के काका चैपान्य दिग्बाइ देन से फल का कारण ईश्वर है। कर्मफल का कारण कर्म नहीं किन्नु ईश्वर है। कर्म और कर्मफल के बीच नियन मन्बन्ध नहीं है। फट वर्म पर आधार नहीं रखता किन्तु ईश्वर पर आधार रखना दमा मानना चाहिए, क्यों कि कर्म करने पर नी बहुत वार पुरुष को उमका फल मिलता हुआ नहीं दिखाई देता। ईश्वर ही हमें अलग अलग परिस्थितियों में रखता है. वह हमें सुख-दुःग्य दवा है, वहीं हमे बन्धन मे डालता है और वही मुन करना है। यह सब अपने का का परिणाम नहीं किन्तु ईश्वर की इच्छा का परिणाम है। हमारे कर्मा का इन मनके साथ कोई सम्बन्ध नहीं। क्रसिद्धान्त झूठा है। ईश्वरला है। सच्ची है । वलीची झवलमी बरेच्छा ॥ न. पुरपक्रपभि व फानि,ते. (१.१.२०) . उपरान्त निदान अमन्य है क्योंकि वन्तुनः कर्षफल का कारण कर्म नहीं किन्तु ईश्वर ही हा तो कर्म न करने पर भी हमें इच्छित फल मिलना चाहिए। किन्तु कहीं भी कर्म किये बिना उसका फल मिलता हुआ दृष्टिगोचर नहीं होता। चले बिना नियत स्थान पर पहुँचा नहीं जा सकता। भिक्षाटन किये विना शिक्षा नहीं मिलती । दवा लिये बिना रोग नहीं मिटता। यदि फल कर्म पर आधार न रखता हो और ईश्वर पर आधार रन्यना हो तो कर्म किये बिना फल मिलना चाहिए। किन्तु पमा नहीं होता। अतः फल ईयर पर नहीं किन्तु कर्म पर ही आधार रखता है। ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं। कर्म किया अतः उसका फल होनेवाला ही है। वटवीज बोया तो वटवृक्ष उगनेवाला ही है। उसमें किसी माध्यम (agency) की आवश्यकता नहीं । कार्य-कारण का नियम ही ऐमा है। कारण के होने पर कार्य होता ही है। जहर खाओ तो मृत्यु होगी ही। फिर जहर को अपने कार्य करने में किसी पर आधार नहीं रखना पड़ता है। कर्म करो तो उसका फल मिलेगा ही। इसमें ईश्वर की जरूरत ही क्या है ? तत्कारितत्वादहेतुः (१.१.२१) कर्म ईश्वरकारित होने से (क्रम से) उक्त दोनों सिद्धान्त तर्कहीन हैं, असत्य हैं। इम सूत्रम' गौतम अपना सिद्धान्त, उपस्थित कर रहे हैं। वह इस प्रकार हैउपर के दोनों सिद्धान्त गलत है। एक कर्म-फल के नियत सम्बन्ध की अवगणना करता है
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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