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________________ हसु याज्ञिक कनकसुन्दरनी रचनामां १. कपरमंजरीना नखनी प्राप्ति अने तेने आधारे गंगाधर घडेली मूर्ति एवं नवु कथानक उमेरायु छे । २. गुणसार सिद्धराजनी चिट्ठी लई कर्पूरमंजरीनो संपर्क साधे छे । अंध गुरु गोविंदनी वातनो कनकमुन्दरे उपयोग कर्यो नथी । ३ भाई माटे शिल्पदृष्टानी प्राप्तिना प्रयत्नो करता गुणसार पर कपूरमंजरी मोह पामे छे अने गुणसार एने मोहसार साथे लग्न करवा जणावे छे । ४. अडना यांत्रिक घोडाना घटकनो उपयोग कर्यो नथी । ५. चार घात भने स्वामिभक्त सेवकना कथानकनो उपयोग थयो नथी। मूळ कथानक: .....मतिसार अने कनकसुन्दरनी रचनाना कथानको वच्चेनो आ भेद कपूरमंजरीनी कथाना मूळभूत माळखानो विचार करवामां खूब ज उपयोगी बने एम छे । सामान्य रीते तो समयनी दृष्टिए जे रचना पहेली होय एमां कथानक प्राचीनतम मूलभूत माळखं जळवातुं होय, एवु' बने छ । एनुं कारण ए छे के प्रचलित कथामां ज्यारे कोई नवु कथानक उमेरातुं होय छे त्यारे ए न्बु उमेरातुं कथानक प्रचलित जूनी कथाने विशेष रोचक बनावे तो अनुगामीओ स्वीकारी लेना होय छे । आथी समयना प्रवाहनी साथे साथे आगळ वधती वार्तानी रचनाओमां काळक्रमे अवनवां कथानको उमेरातां मूळभूत माळखु मात्र अंशरूप बनी जतुं होय छे । कनकसुन्दरनी रचना मतिसारनी रचना थया पछीना सत्तावन वर्षे थई छे, छतां एमां कपूरमंजरी, मूळभूत माळ जळवायेलं छे । ऊडतो यांत्रिक घोडो अने चार घात शिल्पदृष्टासुंदरीना कथाविबो परस्परथी स्वतंत्र अने भिन्न छे । मतिसारनी रचनामां स्वतंत्र गणी शकाय एवा बे के त्रण कथानको संकळायेलां छः १. जीवित पात्रने आधारे थतु मूर्ति विधान, शिल्पदृष्टा सुन्दरीनी शोध भने प्राप्ति । २. वे प्रवासी भाईओ के मित्रो, एकनुं कोई मूर्ति के जीवित प्रत्येर्नु माकर्षण भने अन्यनी प्राप्ति माटेनी सहाय अने मिलन । ३. चार घात अने स्वामिभक्त सेवक ।। कनकसुन्दरनी रचना पहेला प्रकारना बिबर्नु कथानक आपे छे अने बोजा प्रकारना बि साथे पण संबंध धरावे छे । मतिसारनी रचनामां व्रणे
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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