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कुवलयमाला-महाकथा
और (२५) है । ३ कथाओं में किञ्चित् दिव्यतत्त्व है । उनका नम्बर है १९), (१५) और (१९)। ४ दिव्यमानुषो कथाएँ हैं उनका नम्बर है (१०) (१७), (२२) और (२३)। (११) नम्बर की कथा मात्र १ दिव्यकथा है। (८) और (१३) नम्बर की २ कथाएँ पक्षी-कथाएँ हैं ।
(४) स्वयं कथाकार कथित और पात्रों द्वारा कथित अ. कुवलयमाला और कुवलयचंद्र की मुख्य कथा का कथन कथाकार के मुख
से हुआ है । उसी प्रकार अवान्तर कथा नम्बर (१९), (२०) और (२५) भी उनके द्वारा कही गई हैं। आ. उपर्युक तीन कथाओं के अतिरिक्त बाकी को २२ कथाओं का
कथन अन्य पात्रों के मुख से हुआ है । उनके तीन विभाग किये जा सकते हैं : [१] कुवलयचंद्र के सम्पर्क में आने वाले पात्रों द्वारा, [२] इन
पात्रों के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों द्वारा और [३] अन्य व्यक्तियों द्वारा । [१] कुवलयचंद्र को जिन गौण पात्रों ने जिस जिस व्यक्ति की जो जो कथाएँ
सुनाई वे इस प्रकार हैं : (अ) आत्मकथा के रूप में : (९) मुनिसागरदत्त, (१२) यक्ष जिनशेखर एवं
कनकप्रभा, (१३) राजपोपट, (१६) भिल्लाधिपति दृढपरिघ (१७) मुनि भानु (आ) अपनी पूर्व-भवकथा के रूप में : (१८) मुनि भानु ( कुलमित्र-धनमित्र)
(इ) अन्य पात्र की पूर्व-भवकथा के रूप में : राजपीपट द्वारा वनसुन्दरी एणिका
की (१४) 'श्रीमती और सिंह' नाम की पूर्व-भवकथा (६) अन्य कथा : यक्षकन्या कनकप्रभा द्वारा कथित यक्ष जिनशेखर के पूर्व-भव
की (११) ब्राह्मण यज्ञसोम की कथा [२] सागरदत्त को अपनी आत्मकथा (१०) शेठ महाधन की पुत्रीने कह सुनाई [३] (अ) मुनि धर्मनन्दन द्वारा कथित ६ कथाएँ :
अश्व द्वारा अपहृत होने के पश्चात् जंगल में मुनि सागरदत्त के दर्शन होने पर उनके द्वारा कुवलयचंद्र को कही गई पाँच कथाएँ :