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प्राचीन उपनिषदों की दार्शनिक चर्चा सूची से भिन्न है; उदाहरण के लिए, जहां परंपरा थी कि मन, वाणी तथा प्राण का सम्बन्ध क्रमशः चन्द्रमा, अग्नि तथा वायु से जोड़ा जाए वहां उद्दालकने उनका सम्बन्ध क्रमशः अन्न, अग्नि तथा जल से जोड़ा । दूसरे, उद्दालकने कल्पना की कि अन्न का सूक्ष्मतम भाग मन बनता है जबकि उसका अपेक्षाकृत स्थूल भाग मांस बनता है, स्थूलतम भाग मल, अग्नि का सूक्ष्मतम भाग वाणी बनती है जब कि उसका अपेक्षाकृत स्थूल भाग मज्जा बनता है, स्थूलतम भाग अस्थि, अन्त में जल का सूक्ष्मतम भाग प्राण बनता है जबकि उसका अपेक्षाकृत स्थूल भाग रक्त बनता है, स्थूलतम भाग मूत्र । और उद्दालक को एक दूसरी नई कल्पना यह थी कि अन्न का जन्म जल से होता है, जल का अग्नि से तथा अग्नि का 'सत्' से । इस प्रकार उद्दालकने मानव शरीर की सभी जड़-चेतन प्रक्रियामों का उद्गम एक ऐसे तत्त्व में देखा है जो पहले अग्निरूप में परिवतित होता है, फिर अगेन से जलरूप में, तथा अन्त में जल से अन्नरूप में अर्थात् एक ऐसे तत्त्व में जिसे बिना विशेष संकोच के जड कहा जा सकता है । यही कारण है कि कुछ विद्वान् उद्दालक के मत को उत्तरकालीन सांख्य मत का बीजरूप मानते हैं क्योंकि इस सांख्य मत में भी मानव शरीर की सभी जड़-चेतन प्रक्रियाओं का उद्गम 'प्रकृति' नामवाले एक जड तत्त्व में देखा गया है । इसना अवश्य है कि उद्दालक ने 'सत्', अग्नि, जल तथा अन्न इन चारों ही तत्वों को 'देवता' विशेषण दिया है और उनके सम्बन्ध में ऐसे बात की है जैसे मानों वे सभी चेनन व्यक्ति हो। लेकिन हमें नहीं भूलना है कि उनिषदकाल में विश्वस्तरीय शक्तियों को 'देवता' कहने की परम्परा थी-उसी प्रकार जैसे शरीर को 'आत्मा' कहने की; (यही कारण है कि विश्वस्तरीय शक्तियों से सम्बन्धित चर्चाओं का सूचन 'इति अघि दैवतम्' कहकर होता तथा शरीरस्तरीय चर्चाओं का सूचन 'इति अध्यात्मम्' कह कर ) । इसके बावजूद मानना हो पड़ेगा कि एक सर्वथा जडतत्त्व की कल्पना करने में-अर्थात् एक ऐसे जडतत्त्व की कल्पना करने में जो अचेतन हो-उद्दालक को कुछ कठिनाइयां अवश्य रही होंगो-भले ही हम आज पक्का अनुभव न कर सकें कि वे कठिनाइयां क्या थी । याज्ञवल्क्य की चर्चाओं का महत्त्व दूसरे हो प्रकार का है। उनका मुख्य प्रयत्न यह सिद्ध करने को दिशा में था कि शरीरस्तरीय शक्तियों के ऊपर रहकर उनपर शासन करनेवाला तत्त्व 'आत्मा' तथा विश्वस्तरीय शक्तियों के ऊपर रहकर उनपर शासन करनेवाला तत्त्व 'ब्रह्म' एक दूसरे से सर्वथा